Sunday, October 5, 2014

बाबूजी का चश्मा

बाबूजी का चश्म
रमेश नम आँखों के साथ बरामदे में दीवार का टेका लगाए बैठा था । घर के शोर और हो हल्ले से बेखबर वह अपने बचपन की यादों में कुछ इस कदर खोया हुआ था की शायद उसे अंदाजा भी नहीं था की गीता उसे दो तीन बार आवाज़ दे कर बुला चुकी है । उसे याद आ रहा था की किस तरह खेलते हुए पाँव में चोट लग जाने के बाद बाबुजी उसे कंधे पर बिठाकर स्कूल छोड़ने जाया करते थे । माँ के देहांत के बाद बाबुजी ही तो थे जिन्होंने तीनों भाइयों का ख्याल रखा, सुबह नहलाने से रात को खाना खिलाकर सुलाने तक । बाबूजी गाँधी जी के साथ आश्रम में रहा करते थे । अक्सर रात को वो बापू की कहानियाँ सुनाया करते थे । बाबुजी बताते थे की वे बापू के चहेते हुआ करते थे । आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानी कोटे से डाक विभाग में क्लर्क हुए थे । 
गीता ने हाथ पकड़कर हिलाया तो रमेश के कानों में फिर वही शोरगुल सुनाई देने लगा । गीता ने इशारा कर उसे रसोई में आने को कहा । रमेश कंधे से नम आँखों को पोछता हुआ बिना किसी प्रश्न के गीता के पीछे चल दिया । रसोई में पहुँचते ही गीता बिगडती हुई बोली "बाबुजी को सीधारे हुए चार दिन हो चुके है जेठ जी से कब बात करोगे ? बाबुजी ने तो ठीकरा नहीं दिया तुम्हे और तूम बेवकूफों की तरह अपना ही खीसा खाली करने में लगे हो । जिन्हें धन दौलत मिली है उनसे एक फूटी कौड़ी नहीं निकल रही है, और तुम टूटा हुआ चश्मा लेकर भी दोनों हाथों से लुटाने में लगे हो ।  मैं कुछ नहीं जानती आज ही तुम जेठ जी से बात करोगे । बोलो उनसे की अकेले तुमने ही ठेका नहीं ले रखा है ।" रमेश बिना कुछ कहे सुने जा रहा था शायद उसका ध्यान कहीं और था । गीता भनभनाती हुई बोली "अकेले तुम श्रवण कुमार बने हुए हो ना मंझले भैया को कोई दुख है ना बड़े भैया के चेहरे पर कोई शिकन है ।" 
रमेश रसोई से निकल कर ऊपर कमरे में चला गया । मंझले और बड़े भैया इंदौर वाले मामाजी के साथ ठहाके लगा रहे थे । बच्चे हुडदंग मचा रहे थे और दोनो भाभीयां जबलपुर वाले चाचाजी की बहु की साड़ियाँ देख रही थी । रमेश ने कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद कर पलंग के सिरहाने पर कमर टिका ली और अचानक से फूट फूट कर रोने लगा । उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था । गीता से शादी हुए दस साल होने के बाद भी कभी कभी रमेश बाबूजी की गोद में सिर रख कर लेट जाया करता था, तीनों में सबसे लाडला जो था । बिजली विभाग में नौकरी लगने के बाद बाबूजी को लेकर वह भोपाल आ गया था, बाबूजी हमेशा उसी के साथ रहे । रमेश के आंसू नहीं रुक रहे थे परिवार होते हुए भी आज वह बहुत अकेला महसूस कर रहा था । 
अचानक उसकी नज़र उस टूटे हुए गोल फ्रेम वाले चश्मे पर गयी जो बाबूजी ने देहांत से पहले उसको दिया था । यही वह एक मात्र चीज़ थी जो उसके हिस्से में आई थी । बड़े भैया को गाँव की जमीन तो मंझले को उज्जैन वाला घर दिया था । गीता तो तब से ही गुस्से में है जब से वकील बाबु ने पिछले रोज सब घरवालों को बाबूजी की वसीयत पढ़कर सुनाई थी पर रमेश के लिए इन सब के कोई मायने नहीं थे । उसने सलीके से चश्मा उठा कर अलमारी में रख दिया । 
बाबूजी को गए महिना भर हो चुका था । रविवार की सुबह आजादी की लड़ाई के जमाने से बाबूजी के मित्र भगवती प्रसाद किसी सरकारी अफसर के साथ घर आये । रमेश ऊपर के कमरे में बैठा पुरानी एल्बम में तस्वीरें देख रहा था । गीता के आवाज़ लगाने पर नीचे आया । भगवती प्रसाद जी के पैर छु कर करीब के दीवान पर बैठ गया  । भगवती प्रसाद बोले "बेटा ये विमल बाबु है, सरकारी मुलाजिम है बाबूजी ने तुम्हे जो चश्मा दिया था वह देखने आये है ।" रमेश को कुछ समझ नहीं आया पर भगवती चाचा के कहने पर ऊपर के कमरे से चश्मा लेने चला गया । चश्मा लेकर नीचे आया तो देखा गीता टेबल पर चाय रख रही थी । रमेश ने बिना कुछ बोले चश्मा विमल बाबु को थमा दिया । विमल बाबु ने चश्मे को बहुत सलीके से पकड़ कर उसे बहुत गौर से देखा । फिर जेब से एक कागज निकाल कभी चश्मे को तो कभी कागज मे छपी तस्वीर को देखने लगे । करीब दस मिनट के बाद मुस्कुराते हुए भगवती बाबु को इशारा किया । भगवती बाबु रमेश के हाथ पर हाथ रखते हुए बोले "रमेश यह चश्मा गाँधी जी का है । बापू की हत्या के बाद तुम्हारे बाबूजी ने स्मृति स्वरुप इसे अपने पास रख लिया था ।" भगवती चाचा अभी बोल ही रहे थे की विमल बाबु बीच में बोल पड़े "अब क्योंकि यह तुम्हारी संपत्ति है तो सरकार इसके बदले तुम्हे 1 करोड़ ₹ देगी ।" विमल बाबु का बोलना था की गीता के चेहरे पर मानों ख़ुशी की झमाझम होने लगी । वह किसी तरह अपनी ख़ुशी को छिपा पा रही थी । अचानक गीता की निगाह रमेश पर पड़ी, रमेश की दोनों आँखों से आंसू टपक रहे थे ।
लेखक AB

Thursday, October 31, 2013

गेंदबाज़ी कि मौत


कुछ वक़्त पहले टीवी पर एक नामचीन सीमेंट कंपनी के विज्ञापन आता था जिसमें एक लड़की नन्हे मुन्ने से कपड़ो में समंदर से निकलती थी और पीछे से आवाज़ आती थी "विश्वास है इसमें कुछ ख़ास है।" आज तक समझ नहीं आया कि वे किसकी बात कर रहे थे, लड़की कि या सीमेंट की। शायद advt एजेंसी वालों को लगा होगा कि शेविंग क्रीम से लेकर मर्दाना जाँघिया तक जब स्त्री चेहरे दिखा कर बिक रहे है तो शायद यह भी बिक जायेगा। दोष उनका नहीं है, हर सोच पर बाज़ार हावी है। व्यावसायीकरण के इस दौर में बिक्री बढ़ाने के लिए कोई भी हथकंडा जायज है। 
कुछ यही हाल क्रिकेट का हो गया है। टेस्ट मैच तो पहले ही बमुश्किल कोई देखता था अब ट्वेंटी ट्वेंटी के आने के बाद एकदिवसीय के लिए भी दर्शक जुटा पाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में इस तरह के नियम बनाये जा रहे है कि चौके छक्कों कि बरसात हो और खेल में लोगो का interest बना रहे। हर छोर से अलग अलग गेंद, सामान्य ओवर्स में भी सिर्फ चार खिलाड़ियों को दायरे के बाहर खड़ा कर सकने कि बाध्यता और ऊपर से बैटिंग के लिए मददगार पिच। यह सब गेंदबाज़ो के लिए एक दुःस्वप्न कि तरह है। पहले ही पिच से कोई उम्मीद नहीं ऊपर से भारी बल्लो से लग कर गेंद सीधा बाउंड्री का मुंह देखती है, ऐसे में गेंदबाज़ बेबस से नज़र आते है। मुल्क भर में दुश्मन कि तरह देखे जाते है सो अलग। 
पहले ही गली मोहल्ले का कोई लड़का गेंदबाज़ नहीं बनाना चाहता हर किसी को चौक्के छक्के जमाने कि ख्वाहिश रहती है ऊपर से खेल पर बाज़ार इसी तरह हावी रहा और उसकी मूल भावना के साथ यूँ ही खिलवाड़ किया जाता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब कपिल देव और शेन वार्न जैसे नाम सुन लोग आश्चर्य से भर जाया करेंगे और गेंदबाज़ी कि कला का अंत हो जायेगा। 


किसके हैं सरदार पटेल ?

उन्नाव के एक साधू ने जब सपने में 1000 टन सोना देखा तो वहाँ पुरातन विभाग कि टीम के साथ उस खजाने पर अपना हक़ जतलाने वाले कई तथाकथित वंशज भी पहुँच गए। कोई खुद को राजा का वंशज बतलाने लगा तो कोई स्वयं को सेनापति के खानदान कि पैदाइश। जहाँ राज्य सरकार पूरे के पूरे सोने को अपना बताया तो वहीं गाँव वालों ने खजाने में अपना हिस्सा मांगने में देर ना लगायी। Airport से लेकर यूनिवर्सिटी तक कि मांग हो गयी। खुदाई ख़त्म हो गयी और सबको मिला बाबा जी का ठुल्लु। 
आजकल यही हाल सरदार वल्लभ भाई पटेल और जय प्रकाश नारायण का है। एक तरफ जहां कांग्रेसी सरदार पटेल और नितीश JP पर अपना copyright बता रहे है, वहीं दूसरी तरफ Narendra Modi ने बड़ी चतुराई से लोह पुरुष और जय प्रकाश को कांग्रेस और JDU कि झोली से चुरा अपना ब्रांड एम्बेसडर बना लिया। कांग्रेसी बौखला गए है, नितीश का पारा चढ़ा हुआ है पर कुछ भी कहिये आखिरकार इस मुल्क को नेहरू गांधी परिवार के अलावा भी किसी और के बलिदान कि याद आ ही गयी। 
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Thursday, October 24, 2013

Sharad Power

एक ज़माना था जब आलू और प्याज गरीबी रेखा के नीचे आते थे। मिडिल क्लास भिन्डी और हाई क्लास मटर तो इनकी तरफ नज़र उठाकर भी नहीं देखते थे। पर मियाँ वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता। एक रोज़ प्याज की "Sharad Power" लाटरी लग गयी और देखते ही देखते कल का BPL प्याज भी आज fuji apple की बराबरी कर रहा है। आजकल तो Mercedes में आता जाता है। सिर्फ बड़े बंगले वालों के यहाँ ही उठता बैठता है। छोटे गरीबों के तो मुंह भी नहीं लगता। अब तो दर्शन भी दुर्लभ है श्रीमान के। बड़े बड़े लोग बड़ी बड़ी बातें। 

ऐसा नहीं की किस्मत सिर्फ श्रीमान प्याज की ही बदली हो। अरे भाई साहब "Sharad Power" लाटरी ने कईयों को आसमान की ऊचाइयों तक पहुंचा दिया है। अब "चीनी" को ही ले लीजिये। कल तक बेचारी मिडिल क्लास थी, लाटरी क्या लगी अब तो हाथ ही नहीं आती। यही कुछ हाल Mr दूध का भी है। कुल मिलकर "Sharad Power" ही असली "Power" है।