
कहीं भी चले जाइये आम माध्यम वर्गीय आदमी इस भुलावे में जीता है की बुद्धू बक्से की ख़बरों में दिखाई जाने वाली घटनाएं जिन अभागों के साथ होती हैं वे अलग ही होते है ऐसा कुछ उसके साथ कभी नहीं हो सकता वह तो धार्मिक है और ईश्वर में पूरी आस्था रखता है नित्य भगवान् का नाम जपना और पूजा करना भी नहीं भूलता तो निश्चित रूप से ऐसा कोई वाक्या उसके साथ तो हो ही नहीं सकता ईश्वर इतना निष्ठुर नहीं है पर हम भूल जाते हैं की दरिंदगी के शिकार हुए वो बदकिस्मत लोग परग्रही नहीं होते वे इसी दुनिया का हिस्सा होते है हमारी यही सोच अपराध का शिकार हुए व्यक्तियों को समाज से अलग थलग कर देती है वे या तो सामाजिक उपेक्षा के डर से आवाज़ नहीं उठाते या लम्बी कानूनी लड़ाई के बीच ही मानसिक यातनाओं से हिम्मत हार जाते हैं हमारी उपेक्षा उनके दर्द को कई गुना बड़ा देती है
ऐसी घटनाओं की कमी नहीं है जब अपराध को होता हुआ देख भी सेकड़ों की भीड़ मौन बनी रही समाज की यह मौन स्वीकृति अपराधियों का मनोबल बढाती है अपराधियों का विरोध करना तो दूर की बात हम तो घायलों की मदद को भी आगे नहीं बढ़ते और अपने बच्चों को भी ऐसे झमेलों से दूर रहने की सलाह दे डालते है समाज एकजुट हो अपराध की खिलाफत को उतर जाए तो किसी महिला पर बुरी नज़र डालना तो दूर की बात कोई बदमाश किसी बच्चे का खिलौना नहीं छीन सकता
निर्भया को उन छह जनों ने मारा है तो उसकी मौत के लिए वे तमाशबीन भी जिम्मेदार थे जो सड़क पर पड़ी उस असहाय बच्ची को देखते रहे पर किसी ने भी उसे वक़्त रहते अस्पताल ले जाने की जेहमत नहीं उठायी हज़ारों हाथों ने मोमबत्तियां जलाई पर एक हाथ उसकी मदद को आगे नहीं आया ये इस समाज की त्रासदी है ये होता आया है और आगे भी होता रहेगा जब तक आप और हम जैसे लोग अपना मौन नहीं तोड़ते जुर्म की खिलाफत नहीं करते और दर्द झेल रहे उस इंसान के साथ खड़े नहीं होते क्योंकि याद रखिये किसी नास्त्रेदमस ने यह भविष्यवाणी नहीं करी की ऐसा आपके साथ नहीं हो सकता