Monday, September 30, 2013

Scooter vs Scooty


कल्पना करें बीच बाज़ार में आपका पुराना स्कूटर ख़राब हो जाए, हिलाया डुलाया, फिर टेड़ा किया, स्पार्क प्लग भी साफ़ कर लिया पर फिर भी स्टार्ट ना हुआ। हद हो गयी, किक मार मार का टांग जवाब दे जाएगी पर खुदा कसम कोई आकर help नहीं करेगा। पैदल चलने वाले आपको घूरते हुए निकल जायेंगे। रेहड़ी - ठेले वाले एक कुटिल सी मुस्कान देते हुए वहीँ खड़े आपको ताकते रहंगे, बोलेंगे कुछ नहीं। कुछ गाडी वाले इस कदर नज़र अंदाज़ करेंगे की कही आप चिल्ला कर उन्हें हेल्प के लिए ना बोल दे वैसे भी गाडी होने के बावजूद वे दफ्तर के लिए हमेशा लेट ही होते है, हाँ एक दो समझदार टंकी में पेट्रोल चेक करने को जरूर बोल देंगे, मानो हम तो दिमाग से पैदल है, यूँ ही सड़क के बीच वर्जिश करने का मन हो गया जो किक मार मार कर चर्बी जला रहे है।

अब फ़र्ज़ करें की गाडी scooty हो और किक मारने वाली कोई खुबसूरत लड़की तो बाज़ार में खड़े लड़के भले ही एक घडी शर्म कर जाए पर अधेड़ तो बेटा-बेटा बोल कर help करने पहुँच ही जायेंगे और खुदा ना खास्ता जो टंकी खाली मिली तो आधा पौन लीटर तेल अपना निकाल  कर दे देंगे। अकेली बच्ची बेचारी कहाँ जाएगी ?
अब आप लोग कहेंगे भई कोई इंसानियत दिखा रहा है तो तुम्हारे क्यों पेट में दर्द हो रहा है ? क्या किसी जरुरत्मन्द की मदद करना अपराध है ? नहीं नहीं बिलकुल नहीं, कोई अपराध नहीं, बस कभी-कभी ऐसी दया दृष्टि लौंडों पर भी दिखा दिया करें। बच्ची के साथ कभी कभी बच्चों पर भी इंसानियत की बारिश कर दिया करें तो बेहतर होगा। 
कुछ अलग या नया नहीं लिखा आप सब वाकिफ है बस दर्द को अलफ़ाज़ दे दिए। 

बे"चारा" Common Man

जमींदार के लौंडे ने दुखीराम किसान की बेटी छुटकी के साथ दुर्व्यवहार किया, दुखीराम और बाकी गाँव वालों में जमींदार का बड़ा खौफ था पर जैसे तैसे हिम्मत जुटा कर वे लोग जमींदार की चौखट पर इंसाफ की गुहार लगाने पर पहुंचे। जमींदार ने सब कुछ सुनकर अपने वाहियात लौंडे को वहीँ बुला भेजा। लड़का बड़ी बेशर्मी के साथ बालों में हाथ घुमाता हुआ आया, ना कोई शर्म ना कोई पछतावा। जमींदार साहब तेज़ आवाज़ में बोले "बदतमीज़ ये क्या किया तुमने ? खानदान के नाम पर कलंक लगा दिया तुमने। अरे इस गाँव के लोग हमारे बच्चों की तरह हैं, और आज तुमने हमे इनके सामने शर्मिंदा कर दिया। छुटकी तुम्हारी बहन जैसी है, चलो माफ़ी मांगो उस से।" 
बेहया लौंडा छुटकी के सामने जाकर हाथ जोड़ कर वहां से निकल गया। जमींदार जानता था गरम तवे पर पानी डालकर उसे कैसे ठंडा करा जाता है। गाँव वाले खुश, भैया जमींदार के लौंडे ने माफ़ी मांग ली और क्या चाहिए ? ख़ुशी में पागल हुए ये लोग छुटकी के उन आंसुओं को भूल ही गए। भूल गए की छुटकी की इज्ज़त माफ़ी से वापस ना आएगी। गरीब आदमी को तो उम्मीद ही नहीं होती, इतना तो बहुत है। 
बस कुछ ऐसा ही लालू यादव के मामले में हुआ, 950 करोड़ के चारा घोटाले में ये मामला 37 करोड़ का था। अदालत ने दोषी क्या ठहराया जनता खुश तो मीडिया बावली हो गया। मानो भ्रष्टाचार के रावण का अंत हो गया। खुशियाँ मनाई जा रही है पर किस बात की ? 4-5 साल अन्दर रह लेंगे पीछे से उनकी दूकान बेटा चलाएगा। भई अगर ऐसी facility available है तो इस मुल्क के सभी गरीबों को अन्दर कर उनके परिवार वालों को 35-35 करोड़ बाँट देने चाहिए। कुछ साल के दुःख के बाद जिंदगी भर खुश रहेंगे। 
कुल मिलाकर बात यह है की क्या वाकई ये सजा काफी है ? एक आदमी ने अपनी ड्यूटी नहीं निभाई, सालों तक कुर्सी से चिपका रहा पर देश समाज का कोई विकास ना किया, राज्य को गरीबी के दलदल में इस कदर धसा दिया की आज की सरकार विशेष राज्य के दर्जे की भीख मांगती घूम रही है। उन कुछ करोड़ रुपयों के लिए नहीं बल्कि उन करोड़ों लोगो के साथ विश्वासघात करने के लिए ऐसे लोगों के लिए बड़ी से बड़ी सजा भी कम होगी। 
हम नहीं समझेंगे क्योंकि हम तो common man हैं हम तो इसी बात का जश्न मनाएंगे की चलिए at least किसी politician को सजा तो मिली। मनाइये मनाइये .....

Sunday, September 29, 2013

भैया बोल बच्चन

इस मुल्क में सिर्फ तीन चीज़ें चलती हैं, क्रिकेट, बॉलीवुड और राजनीति। क्रिकेट इस मुल्क की रगों में बहता है। एक वक़्त था जब India का मैच चल रहा होता था तब आदमी जन्नत में हो या जहन्नुम में स्कोर पूछना नहीं भूलता था। देश रुक सा जाता था। 20-20 क्रिकेट के आगमन बाद वो बात तो नहीं रही, अब तो क्रिकेट daily sop की तरह हो गया है। 8 बजे शुरू होकर 11 बजे तक ख़त्म भी हो जाता है। नए नवेले खिलाड़ी, रंगीन पोशाकों में पूरी शिद्दत खेलते नज़र आते है ताकि भविष्य में Pepsi, कोका कोला का एक-आध विज्ञापन मिल सके। चलो अच्छा ही है। सब कुछ बदला पर एक चीज़ नहीं बदली, मैच देखने वाला हर शख्स कल भी और आज भी सचिन से लेकर धोनी को हर बॉल पर छक्का ना मारने के लिए कोसता हुआ, अपने घर के ड्राइंग रूम में टीवी के सामने बैठ उन्हें अच्छा खेलने के tips देता रहता है।
"ओये… पुल शॉट मार पुल ……"
"क्या कर रहा है यार, बाहर जाती हुई बॉल को मत छेड़ …"
भाईसाहब ने कभी जिंदगी में बल्ला ना पकड़ा हो, पर बात ऐसे करेंगे जैसे Sir Donald Bradman की छठी औलाद हो। ये वे लोग होते है जिन्हें Off और leg side का फर्क नहीं पता होता पर ये साथ बैठे लोगों में सामने ऊंची ऊंची फेकने में कोई कसर नहीं छोड़ते। और जो गलती से सचिन 1 या 2 रन पर आउट हो जाए तो उसके retirement की प्लानिंग भी यही लोग कर देते है। कुछ अजीब ही hote है हम लोग।
बस राहुल गाँधी का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही है। बड़ी बड़ी बातें, ये करना चाहिए वो करना चाहिए और जब बात जिम्मेदारी लेने की आये तो माँ बेटा दोनों गायब हो जाते हैं। कार्यकर्ताओं की classroom कोचिंग चला रखी है पर खुद ने कभी एक exam ना दिया। बातें और शिकायतें ऐसी करते है, जैसे किसी दूसरी पार्टी की सरकार चल रही हो। क्यों सुनी जाए आपकी बात ? आखिर क्यों ? सुझाव तो मैं भी आये दिन देता ही रहता हूँ, देश की सूरत बदलने वाले ideas की भरमार तो मेरे पास भी है। फिर फर्क क्या है मुझ में और आप में ? फर्क है राहुल भैय्या, आपके पास नीतियों को लागू करवाने का शक्ति है हमारे पास नहीं है। बस भाई बहुत हुआ ये कुर्ते की बाहें ऊंची कर press के सामने अमिताभ की तरह angry young man बनने की नौटंकी बंद करो। आगे बड़ो, जिम्मेदारी लो और कुछ बदल कर दिखाओ फिर बात करना। ये nonsense nonsense की रट लगाने से कुछ ना होगा।  

Friday, September 27, 2013

फटा पोस्टर निकला राहुल

जवानी की देहलीज पर कदम रखने से ठीक पहले मुहांसे और जुबान कुछ ज्यादा ही निकल आते है। मुहांसों पर क्रीम लगाई जा सकती है, पर जुबान पर लगाम लगाना आसान नहीं होता।  लड़कपन का वो दौर ही अलग होता है, घर के बड़ों को मोबाइल या कंप्यूटर के एक दो function सीखा कर हम खुद को बेहद समझदार समझने लगते है। फिर क्या… बड़ों की हर बात में बिना सोचे समझे बीच में बोलना, और उन्हें सलाह देना शुरू कर देते है। बस इसी ज्यादा बोलने के चक्कर में किसी दिन घरवालों की भद पिटवा आते है।
बस यही आज राहुल गांधी के साथ हुआ, वो अलग बात है की लड़कपन की बिमारी उन्हें अधेड़ उम्र में आकर हुई। क्रान्ति की मशाल उठाने के चक्कर में अपनी झोपडी को आग लगा ली। अपनी ही सरकार की भद पिटवा ली। कुछ भी कहो पर मोदी जी आज बड़े खुश हो रहे होंगे। 

Thursday, September 26, 2013

Breakup वाला Love

हमारे मित्र का दिल मोहल्ले में नई आई एक लड़की पर आ गया। आना लाजमी भी था, लड़की सुन्दर और बाप करोडपति, ये बड़ा deadly कॉम्बिनेशन होता है। अच्छे-अच्छे emotionless लोगों के भी emotions जाग जाते हैं। कुल मिलाकर लड़का लड़की के पीछे बावला हो गया।  माताओं की आपसी बातचीत शुरू हुई तो घर आना जाना बढ़ा। लड़का बेकरार तो था ही इसलिए किसी ना किसी छुट्टे बहाने से लड़की के यहाँ पहुँच जाता था। लड़की दोस्त बनी तो पता चला की already committed है, बॉय फ्रेंड बंगलौर में किसी IT कंपनी में है। पल भर में लौंडे के सारे के सारे अरमानों पर पानी फिर गया पर लड़के ने हार नहीं मानी। चुपचाप लड़की का फ्रेंड कम पालतू कुत्ता बन गया। कुछ लाना हो या कहीं ले जाना हो, 24X7 मैडम की सेवा में। दोस्त लोग चिडाते, मजाक बनाते पर लड़का अनसुना कर देता। 
एक दिन पता चला किसी बात पर लड़की का उसके बॉय फ्रेंड से ब्रेकअप हो गया, वैसे भी ये फ़ोन अ फ्रेंड वाले रिश्ते ज्यादा नहीं चलते। बस लड़की डिप्रेशन मोड में आ गयी, खोई-खोई उदास सी रहने लगी। बस हमारे मित्र ने मौके पर चौका मारते हुए अपना कंधा आगे कर दिया। दुखी आदमी और शायरों को क्या चाहिए, बस कोई उनकी सुन ले। लड़की 3-4 महीने तक उसे अपने पूर्व प्रेमी के किस्से सुनाकर पकाती रही पर वो भी बड़ी शान्ति से सुनता। एक दिन भावनाओं का बांध टूटा और लड़के ने अपनी भावनाओं का इज़हार कर दिया। जैसे दूकान में 50 साड़ियाँ खुलवाने के बाद एक भी ना खरीदे निकलना उतना आसान नहीं होता वैसे ही बेचारी यहाँ कैसे मना कर पाती, हाँ कर दिया। लड़का खुश, टारगेट accomplished। 
बस यही भारतीय राजनीति में हो रहा है। BJP और JDU का ब्रेकअप क्या हुआ, कांग्रेस JDU को लुभाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रही। सुना है विशेष राज्य का दर्जा भी दिया जा रहा है। 
चलो अच्छा है …. 

Monday, September 23, 2013

चोकलेटी दंगे

भाईसाहब ये चोकलेट भी क्या चीज़ बनायी गयी है, हमारे बच्चे के दांत खराब कर दिए। चिपक जाती है दांतों में। अब बेचारे बच्चे दिन रात तो मुंह में ब्रश दबाये नहीं घूमते रहेंगे ना, लग गए कीड़े दांतों में और छोटी सी उमर में मुंह से से एक-एक करके सारे दांत ऐसे गायब हुए जैसे इस मुल्क से इमादारी। ऊपर से आप इन आफत की पोटलियों को इतना स्वादिष्ट बना देते हैं, की बच्चा तो खाना भी तब तक नहीं खाता जब तक उसके हाथ में एक चोकलेट ना थमा दी जाए। गलती आपकी है, सरासर आपकी, आखिर ऐसी बेफिजूल की चीज़े आप बनाते ही क्यों है ? जिनसे बच्चों की सेहत ख़राब हो। अरे मैं तो कहता हूँ, सारी चोकलेट की फैक्टरियों पर ताला जड़वा देना चाहिए।
कुछ ऐसा ही नज़ारा राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में देखने को मिला जब एक-एक करके हर राजनैतिक दल के नेताओं ने कौमी दंगो के लिए social media याने facebook, twitter को जी भर कर कोसा। साम्प्रदायिक हिंसा की सारी जिम्मेदारी इन के मत्थे मड दी। कोई पाबंदियां लगाने की बात कह कर निकल गया तो किसी ने अमेरिका से लेकर असम तक के हर दंगों में सोशल मीडिया का role बता दिया। सबसे मजेदार बात तो यह है की इन में से अधिकाँश वे नेता थे, जिनके facebook अकाउंट विदेशी PR कंपनियां मेन्टेन करती है। उचक-उचक कर बोलने वाले ये नेतागण social मीडिया में अपनी छवि को चमकाने और ज्यादा से ज्यादा likes पाने के लिए ऐसी कंपनियों को करोड़ों रुपया देने से भी गुरेज नहीं करते।
कुल मिलाकर रसोई घर में केरोसिन के डिब्बे या रसोई गैस से आग फ़ैल सकती है पर आग लगने की शुरूआती वजह वो नहीं होते। वजह बहुत सी हो सकती है पर उसके लिए आप घर में केरोसिन या गैस सिलिंडर रखना बंद कर देते, यह तो समस्या का कोई समाधान ना हुआ। यहाँ समस्या की जड़ पर हम बात नहीं करेंगे, वह सही भी नहीं होगा, पर यह साफ़ है बच्चे से home work कराने से लेकर उसे शान्ति से बैठाने के लिए आप चोकलेट को हथियार की तरह इस्तेमाल करते रहे और फिर दांत ख़राब करने की जिम्मेदारी चोकलेट पर डाल दी आये, यह सही नहीं है। 

Sunday, September 22, 2013

दूध का Calcium

शहर भर की सारी माओं में होड़ लेगी है, बच्चों को सल्लू बनाने की, complan से लेकर bournvita, apple से लेकर अनार, बादाम से लेकर काजू तक ठूस रही है। सर्दी और गर्मी के लिए भी अलग-अलग चवनप्राश और ना जाने क्या क्या। बस ठूसो सारा दिन, पेट में थोड़ी भी जगह खाली ना रह जाए। आंटी जी यदि नौकरीपेशा हो तो ये जिम्मा बच्चे की आया पर आ जाता है। सुबह से शाम तक फ़ोन पर आँखों के तारे की diet और homework का हिसाब लेती रहती है। कुल मिलाकर सिर्फ पूर्ण शारीरिक विकास की चिंता। बस हो गयी जिम्मेवारी पूरी। 
बच्चा क्या पढ़ रहा है यह पता है पर क्या सीख रहा है, उसका कोई अंदाजा तक नहीं क्योंकि ना पापा को ना मम्मी को वक़्त है, उसे अच्छी बातें सीखाने का, सही गलत का फर्क बताने का। आखिर घर गाडी की EMI इतनी ही है की दोनों का नौकरी करना जरुरी है। थके हारे घर लौटे मम्मी पापा को बाल मन में उपजे लाखो सवालों का सामना ना करना पड़े इसलिए playstation या tablet पकड़ा दिया जाता है या फिर सेकड़ों कार्टून चैनल तो है ही। सोते वक़्त कहानिया सुनाने से पहले माएं पुछा करती थी आज तुमने स्कूल में मास्टर जी को परेशान तो नहीं किया ना ? उनका हर कहना माना ना ? पर आजकल उनका सवाल होता है किस टीचर ने मारा तुम्हे ? जरा नाम बताओ उसका ? अगले दिन प्रिंसिपल से शिकायत। बच्चे हेकड़ी में और बेचारा मास्टर डरा हुआ। बस पल गया राजा बेटा। 
शहर बाज़ार में किसी लड़की के साथ कुछ गलत होने के बाद हर चैनल पर बहस शुरू हो जाती है की मुल्क का एजुकेशन सिस्टम ख़राब है, स्कूलों में नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। ये वो और ना जाने क्या क्या। पर क्या वाकई सारी जिम्मेदारी सिर्फ स्कूलों की होती है ? माँ बाप की कोई जिम्मेदारी नहीं। बच्चे के चरित्र की इमारत चाहे स्कूलों में खड़ी होती हो पर नींव घर पर तैयार होती है। सही और गलत में उस पर कौन हावी होगा ये उसकी नींव की मजबूती पर निर्भर करता है। माँ की शिक्षा और पिता की सीख यह निश्चित करते हैं की वह किस और अपने कदम बढाएगा। 
कुल मिलाकर बच्चे को Bournvita देने से शायद दूध का calcium waste नहीं होगा, पर यदि आपने उसे वक़्त ना दिया तो आपका उम्र भर का किया धरा सब waste जरुर हो जायेगा। फैसला आपका। 

Friday, September 20, 2013

आगे कुवां पीछे खायी

RBI गवर्नर रघुराम राजन की स्थिति उस बिहारी ग्रामीण महिला की तरह हो गयी है, जिसे उसका शहरी पति जीन्स टॉप में देखने की ख्वाहिश रखता है और सास-सासुर दो हाथ जितने घूंघट के पीछे। दोनों की इच्छाओं का सम्मान करते-करते बेचारी का हुलिया कुछ अजीब ही हो जाता है। अंत में लोकल जीन्स, टॉप, गले में लटकता काले बारीक मोतियों वाला मंगलसूत्र और मांग में मुट्ठी भर सिन्दूर, उसको मॉल बाजारों में घूमती तथाकथित मॉडर्न छोरियों में मजाक का विषय बना देता है। 

रघुराम के साथ भी कुछ यही हो रहा है, एक तरफ बुरे आर्थिक हालातों से जूझ रहा व्यापार जगत है, जो उनसे ब्याज दरों में कमी की उम्मीद लगाए बैठा था, दूसरी तरफ महंगाई की मार खा रही इस मुल्क की जनता जो इस महगाई से निजात दिलाने के लिए उन पर नज़रें गड़ाई बैठी है। जाए भी तो जाए कहाँ ? बस इसी बैलेंस का परिणाम था आज की दिशाहीन मौद्रिक नीति। आखिर बिना सही राजनैतिक नेतृत्व के RBI भी कितने दिन अर्थ्व्यस्वस्था को संभाल सकती है।

Wednesday, September 18, 2013

फ़ाइल ख़त्म पैसा हजम

कौन कमबख्त कहता है, की tension सिर्फ बड़ो को होता है, मेरा तो पूरा बचपन टेंशन में बीता है। स्कूल से आने से लेकर जाने तक सिर पर भारी बोझ, home work नहीं किया, आज तो मैडम पक्का मारेगी। बस इसी खौफ के चलते मैं हमेशा भगवान् से खुद को जल्द से जल्द बड़ा कर देने की प्रार्थना किया करता था। पर आप
तो जानते ही है भगवान् के घर करोड़ों अरबों अर्जियों का पहले ही अम्बार लगा हुआ है, मेरी अर्जी पर तो कहाँ उनकी निगाह जाती। दर्द बहुत है इस दुनिया में और भगवान् भी बड़े रिश्वतखोर है, बिना सवा किलो लड्डू के तो मंदिर की लाइन में भी सवा सेकंड खड़े नहीं रहने देते। जितना बड़ा डिब्बा आपके हाथ होगा उतना ही अधिक देर दर्शन का लाभ मिलेगा। भगवान की लीला भगवान जाने, चलिए फिर मेरे टेंशन पर आते है। तो कुल मिलकर इस होम वर्क अर्थात गृह कार्य ने मेरे जीवन की शांति छीन रखी थी। 
एक बार सातवी कक्षा में कुछ यूँ हुआ की साल भर मैंने इतिहास का होमवर्क किया ही नहीं, और ना जाने कैसे पर कभी पकडे भी नहीं गए। साल के अंत में वार्षिक परीक्षा से ठीक पहले एक कॉपी टेस्ट हुआ, इसमें साफ़ सुथरी खाकी कवर कॉपी, अच्छी लेखनी आदि के अंक मिला करते थे पर हम तो उस्ताद थे हमारा तो हर पन्ना ही साफ़ था दिखाते भी तो क्या ? बस मन घबराने लगा। लगा इस बार तो लुड़कना तय है, पिताजी के तमाचे और मैडम जी की स्केल का डर सताने लगा। हालत ऐसी की काटो तो खून नहीं। 
परीक्षा से एक दिन पहले एक खाली कॉपी को जितना भर सकते थे उतना भरा पर साल भर के काले कारनामों को एक दिन में धोया नहीं जा सकता। हिम्मत जवाब दे गयी, भगवान् का नाम लेकर स्कूल पहुचे। हर घंटे के साथ धडकनों की रफ़्तार बाद रही थी। इतिहास के पीरियड में मैडम जी क्लास में पहुची, एक-एक करके students को बुलाती गयी और कापियां देख लिस्ट में अंक लिखिती गयी। नाम A से था तो जल्द ही हमारा भी नंबर लग गया। ना जाने अचानक क्या हुआ, खाली हाथ ही मैडम के सामने जा कर खड़ा हो गया। बचपन में बड़े cute से हुआ करते थे हम तो मैडम जी ने भी बड़े
प्यार से कॉपी के बारे में पूछा और हमने रोते हुए जवाब दिया "मैडम कॉपी तो ना जाने कहाँ खो गयी, मिल ही नहीं रही।" मैडम ने चुप कराते हुए कहा कोई बात नहीं चुप हो जाओ दूसरी बना लेना। 
कुछ इसी तरह कोयला मंत्रालय से कोयला आवंटन की फाइलें गुम हो गयी हैं, आखिर लाखों करोड़ों के काले
कारनामों को छुपाने का इस से आसान तरीका और क्या होता। मेरी मैडम चाहे मेरा झूठ को ना पकड़
पायी हो पर मुझे इतना यकीन है, की सुप्रीम कोर्ट इन देश द्रोहियों को नहीं बक्शेगा।

Tuesday, September 17, 2013

2014 का शक्तिमान

जब में छोटा था, शायद छठी सातवी की बात रही होगी, तब रविवार को दूरदर्शन पर "शक्तिमान" नाम का एक धारावाहिक आया करता था। आप सब तो वाकिफ ही होंगे इस नाम से, आखिर वह पहला देसी सुपर हीरो जो था। सुपरमैन, हीमैन से लेकर स्पाइडरमैन जैसे होलीवूडिया महामानवों की जमात में Made in India शक्तिमान हमें अपना सा लगता था। हम बावलों की तरह उसके इंतज़ार में घडी की सुइयों की तरफ नज़र गडाए बैठे रहते थे। पिताजी भी इस मौके का फायदा उठाने से नहीं चुकते थे, शर्त लगा दी, homework पूरा करने पर ही टीवी चलेगा। हद्द है यार ये बड़े इतने वो क्यों होते है, पर फिर भी हम जैसे तैसे घसीटे मार मार कर होमवर्क पूरा कर ही लिया करते थे। फिर शक्तिमान uncle आते थे अपनी धुरी पर गोल-गोल घूम अँधेरा कायम नहीं होने देते थे।
कुछ episodes निकले की अखबारों में खबर आई की शक्तिमान देख किसी बच्चे ने बिल्डिंग से इस उम्मीद में छलांग लगा ली की उसे बचाने शक्तिमान आएगा पर ऐसा न हुआ और वह बचाया ना जा सका, इस तरह की कुछ ख़बरें और आई। विरोध का दौर शुरू हुआ और बाद में मुकेश खन्ना साहब मतलब शक्तिमान जी को खुद सामने आकर कहना पड़ा की भाई मैं भी आपकी तरह एक इंसान हूँ, मुझे भगवान् ना समझिये।
चलिए छोडिये वे तो बच्चे थे, पर इस मुल्क के बड़े बुजुर्गों को क्या हुआ है, जो इस तरह हाथ पर हाथ धरे किसी के आने की उम्मीद लगाए बैठे है। वे इस इंतज़ार में बैठे हैं की कोई आएगा और उनके सारे दुःख दर्दों को मिटा जाएगा। एक शहंशाह, एक महामानव जो इस सड़े-गले system को और इस मुल्क की किस्मत बदल डालेगा। एक ऐसा व्यक्ति जो संत्री से लेकर मंत्री तक सबको ईमानदार बना देगा। एक ऐसा सुपर हीरो जिसके खौफ से हर एक आतंकवादी थर्रा जाए, जिसके रहते पाकिस्तान को अपनी औकात याद आ जाये। बस यही ख्वाब लिए हर आम आदमी 2014 का इंतज़ार कर रहे है। ना मियाँ ना, पीठ पर चद्दर बांधे कोई हीरो नहीं आने वाला। ना उड़ कर ना घूम घूम कर।
जिन नरेन्द्र मोदी साहब की प्रतीक्षा में आप आँखें लगाए बैठे है, उनके हाथ में भी कोई जादू की छड़ी ना होगी, जो घुमाया और बदल गया देश, सुधर गयी इकॉनमी।
पर ऐसा नहीं की बदलाव नहीं आएगा, बदलेगा ये देश, ये मुल्क बदलेगा, बस जहां खड़े हो वहां सुधार लाओ। क्योंकि याद रखना 100 बेईमानों में से सिर्फ 1 नेता होता है, 99 हम और आप होते है।

Monday, September 16, 2013

राम, रहीम और कद्दू

बचपन में जब में बीमार होता था, बुखार या कुछ और होता तो मेरी प्यारी माँ मुझे बिना तेज़ मसालों की, बिलकुल फीकी सी लौकी की सब्जी, रोटी के साथ खिलाया करती। कभी कभी फीका कद्दू या तुरई भी। इसका असर कुछ ऐसा हुआ की वक़्त के साथ मुझे सब्जियां मुझे बीमारू सी लगने लगी। शाम भर खेलने के बाद घर में घुसते ही यदि यह पता लग जाए की रात के खाने में कद्दू-लौकी बने है तो भैया हम मुंह बना लिया करते थे। कुलमिलाकर मुझे इन सब्जियों से नफरत सी हो गयी थी।
शायद ये नफ़रत उम्र भर की दुश्मनी में बदल जाती यदि पिछले साल में गोवर्धन (मथुरा) ना गया होता। माँ की इच्छा पर हम गोवर्धन चल दिए, वैसे तो पूरा भारत ही अपने लजीज खाने के लिए जाना जाता है पर बृज भूमि के स्वाद का तो क्या कहना, मथुरा के प्रसिद्ध पेड़े से लेकर शुद्ध देसी घी की इमरती ने एक ओर जहां मेरे मुंह में मिठास घोल दी, वही कुल्हड़ वाली मखनिया लस्सी पी कर आत्मा तृप्त हो गयी। इतनी मीठा दबाने के बाद जब हमारी नज़र देसी घी में तली जा रही कचोरियों पर पड़ी तो खा-खा कर जवाब दे गए पेट में भी थोड़ी जगह बन ही गयी। इन कचोरियों को वहां की स्थानीय भाषा में बेडही भी कहा जाता है। हमे कचोरी आलू की गीली और कद्दू की सूखी सब्जी के साथ दी गयी। आलू की सब्जी तो बहुत खायी थी पर कद्दू को इतना लजीज कभी ना पाया था। जिंदगी में पहली बार नफ़रत प्यार में बदल गयी, हम उस कद्दू की सब्जी के चक्कर में 3 कचोरियाँ खा गए। मानो अमृत चख रहे हो।
बस ऐसा ही होता हैं, बचपन से हमे कुछ परोसा जाता है, एक विचार के रूप में, फिर धीरे-धीरे वही विचार हमारी सोच में तब्दील हो जाता है और फिर वही सोच हमारे सत्य में। कभी किसी हिन्दू के परिवार में मुस्लिमों से यारी दोस्ती ना करने की सीख दी गयी तो कभी किसी मुस्लिम के घर हिन्दुओं के खिलाफ ज़हर उगला गया। गीली मिटटी को जिसने जैसे चाहा ढाल दिया। एक पीड़ी का ज़हर दूसरी में चला गया, बस यही था विरासत में देने को।
पर हम तो आधुनिक विचारों से लबरेज़ होने का दावा ठोका करते थे, फिर आखिर कैसे उन ढोंगियों के बातों में आ गये। विज्ञान के युग में बिना प्रैक्टिकल किये किसी लफंदर की थ्योरी को सही मान बैठे। अमां छोडिये अक्ल में पत्थर पड़े हैं हमारी, भाषण बाजी से कुछ ना होगा। हाँ बस एक बार जरा उधर भी नज़र डाल लीजियेगा, इंसां ही बसते है वहां पर भी, हमारे आपके जैसे और वैसे भी जब तक दूसरी जगह के कद्दू का स्वाद ना चखोगे तब तक नफ़रत ख़त्म ना होगी।

Friday, September 13, 2013

एक युग की शुरुआत या एक युग का अंत

सुबह डिस्कवरी चैनल पर अफ्रीकन शेरों पर कार्यक्रम आ रहा था। शेर, यह वो शब्द है जो कमजोर दिलों में खौफ पैदा कर देता है। वीरता, दृडता और शौर्य का प्रतीक है यह अलफ़ाज़। बात जंगल के शेर की करें तो एक युवा ताकतवर शेर कुछ मादाओं और शावकों वाले झुण्ड का मुखिया तो होता ही है पर साथ ही जंगले के एक बहुत इलाके पर उसकी हुकूमत भी होती है।  इस पूरे इलाके में शिकार का हक केवल उसका होता है, मादाएं वंश वृद्धि और शावकों के पालन पोषण की जिम्मेवारी निभाती है। अपनी हुकूमत और झुण्ड की मादाओं पर अपना अधिकार खो जाने के भय से मुखिया, नर शावको को थोडा व्यस्क होते ही झुण्ड से बाहर खदेड़ देता है। वक़्त बदलता है, वक़्त के साथ शेर बुढा हो जाता है, रोगों से ग्रस्त, असहाय और निर्बल। झुण्ड के खदेड़े हुए नर अब फुर्तीले और ज्यादा ताकतवर हो गए होते है, झुण्ड और मादाओं पर अधिकार पाने को वे आतुर होते है, वयस्कों का सबसे शक्तिशाली नर मुखिया को चुनौती देता है। वृद्ध शेर हार नहीं मानता, वह तेज़ दहाड़ के साथ चुनौती को स्वीकार करता है। घमासान युद्ध होता है और जो पहले से निश्चित था वही होता है, व्यस्क के मजबूत पंजे और जबड़े वृद्ध शेर के शरीर में कई जगह घाव कर देते है, उसके पिछले पैर की हड्डी तक टूट जाती है। लहुलुहान वृद्ध घसीटता हुआ झुण्ड से कहीं दूर एकांत में चला जाता है और भोजन के अभाव में एकांत मृत्यु प्राप्त करता है। इसी के साथ एक युग की समाप्ति हो जाती है। शायद वह कुछ और समय जीवित रह पाता यदि बदलाव को स्वीकार कर लेता। यही नियम है।
BJP में Narendra Modi की ताजपोशी और अडवाणी युग का अंत भी कुछ इसी तरह हुआ है। 

Monday, September 9, 2013

हिन्दू का बेटा, मुसलमान की औलाद

रसायन विज्ञान के छात्र उत्प्रेरक (catalyst) नाम के पदार्थ से भली भांति परिचित होंगे, यह वह पदार्थ होता है जो किसी भी तत्वों की आपसी अभिक्रिया (Reaction) की गति को और अधिक तीव्र कर देता है पर साथ ही पूरी रिएक्शन के दौरान वह खुद जस का तस बना रहता है। रिएक्शन तो उसके बिना भी पूर्ण हो जाती परन्तु उसकी उपस्तिथि उसे और अधिक वेग प्रदान करती है। 
अब आप सोच रहे होंगे की इन महाशय को अचानक chemistry से इतना लगाव कैसे हो गया, नहीं मित्रो बात यहाँ रसायन की नहीं मुल्क की है। इस मुल्क में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। UP के मुजफ्फरनगर में एक लड़की को किसी मनचले ने छेड़ दिया, Reaction होना तो स्वाभाविक था ही, पर मौके का फायदा उठा कुछ नेतागण catalyst बन बैठे, और नतीजा यह की जो बात एक-दो लौंडों की पिटाई के साथ ख़त्म हो जाती, इनकी भड़काऊ और उत्तेजक बयानबाजी ने पूरे मुजफ्फरनगर में आग लगा दी। खून बहा, किसी का लड़का तो किसी का पति इन मौका परस्तों के घटिया मंसूबों की भेंट चढ़ गया। 
ऐसी घटनाएं होनी भी थी, उम्मीद भी की जा रही थी इनकी, आखिर 2014 की तैयारियां जो शुरू हो चुकी है। वैसे भी वोटों के मामले में उत्तर प्रदेश दुधारू गाय की तरह है, जिसके आँगन में खड़ी होगी उसी के यहाँ लोकसभा सीटों की गंगा बहेगी और हर एक राजनैतिक दल अपने तरीके से इन वोटों को बटोरने की फिराक में है। हिन्दू-मुस्लिम तनाव की वजह से होने वाले वोटों के ध्रुवीकरण से कुछ दल वोट बैंक के एक तरफ़ा हो जाने के सपने सजाये बैठे हैं और हम उनकी चाल का हिस्सा बन जाते है। 
स्वीकार कर लीजिये हम मुर्ख थे, मुर्ख है और सदा मुर्ख ही रहेंगे, कोई चार बातें बोलता है और हम मरने मारने पर उतारू हो जाते है, खून के प्यासे हो जाते हैं, दरिन्दे बन जाते हैं। फिर क्यों कोसते है हम उन आतंकवादियों को, उनको भी किसी ने बरगलाया होगा। चार पांच विडियो दिखा उनका दिमाग फेर दिया होगा। कोई ख़ास अंतर नहीं है हम में और उनमें बस फर्क है की वे दूसरे मुल्क से आते है। हम कठपुतलियाँ बन जाते हैं चंद शैतानों की, जो हमे अपने इशारों पर नचा कर अपने नापाक मंसूबों को पूरा करतें हैं।     
याद रखना सुरेश मरे या सुहैल, बेटा माँ का जाता है, बाकी किसी को फर्क नहीं पड़ता।  

Sunday, September 8, 2013

मुफ्त का चन्दन, घिस मेरे नंदन

बचपन में पिताजी हमें exam में पहली श्रेणी लाने के लिए कभी नई साइकिल, कभी किसी और इनाम का प्रलोभन दिया करते थे, हम जोश में खूब मेहनत किया करते थे और उसे हासिल करने की कोशिश करते थे, बात यहाँ केवल परीक्षा में अंक लाने तक सीमित नहीं है हम बात कर रहे है प्रयास की, आगे बढ़ने की कोशिश की, कुछ पाने की चाहत की, किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी शिद्दत से जुट जाने की। हर कोई अपने जीवन में कुछ पाना चाहता है, किसी शिखर को छू जाना चाहता है, इसके लिए वो जी तोड़ मेहनत भी करता है। पर क्या हो जब सब कुछ बिना मेहनत मिलने लगे, कुछ पाने की चाहत करे और मिल जाए, सपना देखे और पूरा हो जाए। बस फिर क्या है आराम की जिंदगी, पत्ता भी कौन हिलाएगा ?

यही आज हो रहा है, राजनैतिक पार्टियों में होड़ लगी है मुफ्त का सामान बांटने की, गेहूं-चावल से लेकर, टेबलेट, लैपटॉप, मोबाइल, साइकिल, बिजली तक सब कुछ बांटा जा रहा है सरकारी खजाने के मुंह खोल दिए गए है। वोट पाने की चाहत में जनता के मुंह में नोट तक ठूसे जा रहे है। नरेगा में नाम लिखा दीजिये, सरपंच अपना हिस्सा काट बाकी रकम आपके घर पहुंचा देगा।

जिस मुल्क का प्रधानमंत्री, अर्थशास्त्र का सचिन तेंदुलकर माना जाता है, उस मुल्क की ऐसी दुर्गति देख बड़ा दुःख होता है। जहाँ नीतियां बननी चाहिए, लोगों को स्वावलंबी और आत्म निर्भर बनाने की वहां उन्हें भिखारी बनाया जा रहा है। खैरात की जिंदगी जीने की आदत डाली जा रही है। जी भर कर बच्चे पैदा करें, सरकार है ना खाना खिलाने के लिए, हाँ बस उनकी पार्टी को वोट देते रहे।

क्या इस तरह चलेगा ये मुल्क ? एक ओर जहां हम आर्थिक मंदी की कगार पर हैं वहीं दूसरी ओर वोट बैंक की खातिर एक के बाद एक लाखों करोड़ रूपये की खैरातें बांटी जा रही है। वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, रुपया औंधे मुंह गिर रहा है, देश की सुरक्षा के लिए हथियार और गोला-बारूद खरीदने के लिए पैसे नहीं, पर गरीबों को मोबाइल बांटने की तैयारी चल रही है। विकास के विज्ञापनों में सालों से दिल्ली मेट्रो और एक दो हवाई अड्डों के फोटो चस्पा कर वाहवाही बटोरने की कोशिश होती है। कुल मिलाकर मुल्क का बंटाधार हो रहा है फिर भी भारत निर्माण हो रहा है। 

ये कैसी सहनशीलता

मेरी कक्षा में कुछ बदमाश लड़के थे, जो अपनी शैतानियों और नाफरमानियों  की वजह से स्कूल भर में कुख्यात थे। कभी किसी से लड़ाई तो कभी किसी की पिटाई, यही उनका daily routine था। टीचर भी ज्यादा कुछ कहते नहीं थे, कहेंगे भी कैसे ? उनमें से एक शहर के MLA का लौंडा था, दूसरा किसी बड़े ट्रांसपोर्टर की औलाद। कुल मिलाकर इन छोरों ने हर किसी की नाक में दम कर रखा था।

एक लड़का और भी था, शांत, स्थिर, ना ज्यादा बोलता था ना कुछ कहता था। अपनी ही दुनिया में मस्त। ना जाने कैसे वो उन बदमाशों के निशाने पर आ गया, पहले पहल तो वे सिर्फ उसका मजाक बनाते, कुछ उल्टा सीधा बोल निकल जाते पर वह चुप रहता, कुछ नहीं बोलता। धीरे-धीरे उसकी चुप्पी ने उनको बढावा दिया, उनकी हिम्मत खुली, एक दिन उनमें से किसी एक ने उसे क्लास में धक्का दे कर गिराने की कोशिश की, वह लड़खड़ा कर गिर गया। कक्षा में सन्नाटा छा गया, लड़कियां एक कोने में सिमट गयी, बाकी लड़के देश के आम आदमी की तरह तमाशा देखने में लग गए, वे वही कर रहे थे जो पितामाह ने द्रौपदी के चीहरण के वक़्त किया था और हमेशा से यही तो होता आया है, चंद दुर्जन, सज्जनों पर जुल्म करते है, सेकड़ों निगाहें चुपचाप उस जुल्म की साक्षी बनती है और तमाशा देख निकल जाती है और आखिर हमारे घर के बड़े बूढ़े भी यही सीखाते हैं ना, बेटा दूसरों के फटे में टांग ना अड़ाना, बस मुंह फेर कर निकल आना। छोडिये इन बातों को बात करते है उस लड़के की, वह शान्ति से खड़ा हुआ, वो नालायक ठहाके लगा रहे थे, जैसे कोई वीरता का काम किया हो। लड़का आगे बढ़ा, MLA के कपूत के सामने जा कर खड़ा हुआ और एक जोर का तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया, लौंडे हिल गए, गुस्से में लाल पीले दोनों उस पर टूट पड़े पर हमारे hero ने भी अचानक Bruce lee का अवतार ले लिया, दोनों की जमकर पिटाई करी, बाद में पता चला Hero करते में black belt था। दोनों कुछ दिन तक स्कूल में दिखाई नहीं दिए बाद में आए तो कभी उसकी तरफ आँख उठाकर भी ना देखा।

यही होता है लोग हमारी चुप्पी को जल्द ही हमारी कायरता समझ लेते थे। पर कोई गुस्ताखी करता जाए और हम सहनशीलता की मूर्ति बने सहते रहे यह भी कोई महानता तो नहीं। एक वक़्त आता है जब जवाब जरूरी बन आता है, प्रितिरोध करना पड़ता है अपनी शक्ति अपनी समझ से सामना करना पड़ता है।  बतलाना पड़ता है की बस अब और नहीं, यह गलत है।

पर ऐसा हो नहीं रहा, मुल्क के तौर पर हमारी सहनशीलता अब कायरता से नज़र आ रही है।  चीन की गुस्ताखियाँ दिन ब दिन बढती ही जा रही है पर हम चुप है। वे हमारी सीमा में आकर बैठ गए और हम उनसे वापस जाने की भीख मांगते रहे, आखिरकार अपनी ही एक चौकी छोडनी पड़ी। वे रुके नहीं, फिर आये रोज़ आ रहे है कभी लद्दाख में तो कभी अरुणांचल में पर हमारी सरकार हर बार इसे ठन्डे बस्ते में डालने की कोशिश करती रही, जाहिर सी बात है, सरकार इस मामले को तूल देकर बढ़ाना नहीं चाहती पर आखिर कब तक ? 1962 में भी यही हुआ था हम गला फाड़ फाड़ हिंदी चीनी भाई भाई के नारे लगा रहे थे और उधर चीन पीठ में छुरा घोपने के लिए छुरे की धार तेज़ करने में लगा था। कुछ नहीं बदला आज भी हमारे पास हथियार गोला बारूद और संसाधनों की कमी है। बॉर्डर तक जाने लिए पक्की सड़के तक नहीं।  और चीन ये बात बखूबी जानता है।  ऐसा नहीं की चीन लड़ने के मूड में है पर ऐसी हिमाकत कर वह एशिया में अपने वर्चस्व को बढ़ाना चाहता है और दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज करने से भारत को रोकना चाहता है। चीन के इस कूटनैतिक चक्रव्युह्ह को यदि समय रहते न समझा गया तो बातों बातों में हमारी जमीन का एक बड़ा भाग चीन के नक़्शे में चला जाएगा।
बेहतर होगा की हम वक़्त रहते जाग जाए।

हिन्दू या सेक्युलर

बड़ा मुश्किल निर्णय है किस राह को अपनाऊं ? जन्म से में एक हिन्दू हूँ, हमारे कुछ रीति रिवाज, कुछ मान्यताएं हैं, एक पूरी सभ्यता है, जिसे बनाये रखना है। गंगा जमुना के घाटों पर हो रही आरतियाँ, वो मंदिर की घंटियों की स्वर लहरियां, पाठ-पूजा, मंत्रोचारण, कर्म काण्ड मेरे जीवन का संगीत है। राम का जीवन मेरी प्रेरणा है तो कृष्ण की गीता मेरी मार्ग दर्शक ।

दूसरी तरफ है सर्व धर्म समभाव की वो सोच है जो मुझे सभी धर्म जातियों का सम्मान करना सीखाती है मुझे जाति धर्म के भेद से ऊपर उठकर इंसान और इंसानियत का पाठ पढ़ाती है।

पर संशय यही से शुरू होता है, सेक्युलर सोच जहां मुझे सहिष्णु बनाती है वहीँ अत्यधिक सहिष्णुता मेरी संस्कृति के लिए घातक हो रही है। कोई आया थोड़ी जगह मांगी फिर पसर गया पर मैं कुछ ना बोला, मेरे ही चार दीवारी को तोड़ अपना आशियाना बना लिया, फिर भी मैं चुप रहा, अब मेरी ही जमीं पर मेरे अस्तित्व पर प्रश्न कर रहा है।

बात राम मंदिर की नहीं है बात अस्तित्व की है राम मंदिर तो एक प्रतीक मात्र है। मैं किसी धर्म का विरोधी नहीं हूँ पर याहन प्रश्न मेरे अस्तित्व का है। मैं तक तक सेक्युलर हूँ जब तक मेरे हिंदुत्व पर आंच नहीं आती।

मैं एक सेक्युलर हिन्दू हूँ

Friday, September 6, 2013

Mercedes वाले बाबा

बाबाओं की भीड़ लगी है, केदारनाथ से सोमनाथ तक, मथुरा से काशी तक हर तरफ बाबा ही बाबा। कुछ गेरुए रंग में ढके तो कुछ सफ़ेद सफ़ेद रंग ओढे।  किसी के पीछे चेले चपाटों की भीड़ तो कुछ भीड़ से दूर कहीं एकांत में ना जाने क्या खोज रहे हैं। कुछ प्राइवेट tution टीचर की तरह धर्म का अजब गजब ज्ञान बांटने की fees वसूलने में लगे हैं तो कुछ free service भी दे रहे है। पर असल बात तो ये है हम भी बड़ी दूकान देख कर ही माल खरीदते हैं। वेद पुराण लिखने वाले author कब के निकल लिए पर उनमें छिपे सत्य से हमारा साक्षात्कार कराने का जिम्मा अब इन्ही tutor बाबाओं ने अपने कंधे पर ले लिया है। धर्म का पूरा बाज़ार सजा हुआ है, अलग-अलग तरह की दुकाने जहाँ आपकी हैसियत के हिसाब से ईश्वर की कृपा नसीब होती है। कोई हरी चटनी के साथ समोसा खिला कर कृपा बाँट रहा है, तो कोई सफ़ेद कपडे पहन नाच-नाच कर जीवन जीने की कला सीखा रहा है। पर इन सबमें कुछ बातें कॉमन है सब के सब आलिशान बंगलों में रहते है, महंगी गाड़ियों में घूमते हैं, करोड़ों अरबों के आश्रमों के मालिक हैं।  Internet पर इनकी वेबसाइट होती है facebook और twitter पर इनके अकाउंट और लाखों करोड़ों की तादाद में followers, जो सुबह उठ कर भगवान् के आगे मत्था झुकाने से पहले इनके updates पढ़ते हैं। कईयों की मार्केटिंग में तो IIM ग्रेजुएट्स भी लगे है, जो event मैनेजमेंट से लेकर इनकी image मैनेजमेंट तक का सारा काम देखते हैं।  इनमें से कईयों ने अपने बेटा बेटियों को भी फॅमिली बिज़नस का हिस्सा बना उनका career भी सेट कर दिया है।
इनकी दूकान चल रही है और सब कुछ जानते बुझते हम चला रहे है। ऐसा नहीं की हम बेवकूफ या नादान है या हमे कुछ पता नहीं है पर हम सताए हुए है, दुखी है, निराश है, दर्द कूट कूट कर भरा है, हम में, विश्वास हिल सा जाता है और पहुँच जाते है दुखों की दवा तलाशते हुए और फिर हमारी समझ पर हमारा दर्द हावी हो जाता है, ये बोलते हैं हम सुनते है और धीरे धीरे इन्हें देवदूत मान पूजने लगते है। ये इंसान से खुदा बन जाते है और हम असली खुदा को ही भूल जाते है। दुःख और तकलीफें तो वहीं की वहीं रह जाती हैं।
हमे समझना होगा थोडा विचारना होगा की बड़े-बड़े पांडाल सजा कर एंट्री फीस लगा कर मोक्ष का अजीब मार्ग दिखाने वाले ऐसे ढोंगी लोग ईश्वर नहीं है ना ही सच्चे गुरु क्योंकि जो ज्ञानी है, संत हैं, महात्मा है, वे तो लोभ मोह की इस दुनिया से दूर हैं, वे आपको पांच सितारा पंडालों वाले इन गुरु घंटालों की जमात में नहीं मिलेंगे।
गुरु तो वो है जो ईश्वर का मार्ग दिखाए ना की वो जो खुद को ईश्वर बताये।
कबीरदास ने कहा है ….
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥