जवानी की देहलीज पर कदम रखने से ठीक पहले मुहांसे और जुबान कुछ ज्यादा ही निकल आते है। मुहांसों पर क्रीम लगाई जा सकती है, पर जुबान पर लगाम लगाना आसान नहीं होता। लड़कपन का वो दौर ही अलग होता है, घर के बड़ों को मोबाइल या कंप्यूटर के एक दो function सीखा कर हम खुद को बेहद समझदार समझने लगते है। फिर क्या… बड़ों की हर बात में बिना सोचे समझे बीच में बोलना, और उन्हें सलाह देना शुरू कर देते है। बस इसी ज्यादा बोलने के चक्कर में किसी दिन घरवालों की भद पिटवा आते है।
बस यही आज राहुल गांधी के साथ हुआ, वो अलग बात है की लड़कपन की बिमारी उन्हें अधेड़ उम्र में आकर हुई। क्रान्ति की मशाल उठाने के चक्कर में अपनी झोपडी को आग लगा ली। अपनी ही सरकार की भद पिटवा ली। कुछ भी कहो पर मोदी जी आज बड़े खुश हो रहे होंगे।
बस यही आज राहुल गांधी के साथ हुआ, वो अलग बात है की लड़कपन की बिमारी उन्हें अधेड़ उम्र में आकर हुई। क्रान्ति की मशाल उठाने के चक्कर में अपनी झोपडी को आग लगा ली। अपनी ही सरकार की भद पिटवा ली। कुछ भी कहो पर मोदी जी आज बड़े खुश हो रहे होंगे।
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