Sunday, November 14, 2010

एक है "राजा"


भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे कई मौके आये है जब गठबंधन सरकार के मुखिया को सहयोगी दलों का बेजा दबाव झेलना पड़ा हो l कभी सरकारी नीतियों को लेकर, तो कभी मंत्रिमंडल में संख्या की खींचतान, घर के इन वीभिषणों के दिए घावों ने लगभग-लगभग हर गठबंधन सरकार को लहू लुहान किया है
आज एक बार फिर सत्ता के गलियारों में राजनीति गर्म है, सरकार जनता और विपक्षी दलों के निशाने पर है l मुद्दा भी कोई ऐसा वैसा नहीं, सरकार के ही एक मंत्री ने सभी नियम-कायदों को ताक पर रखकर राष्ट्रीय संपत्ति को निजी कम्पनीयों को ओने-पाने दामों में बेचकर देश को 176000 करोड़ का चुना लगाया है

आधुनिक भारत के इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला और सरकार विवश है अपने ही एक मंत्री के खिलाफ कार्यवाही करने को, मंत्री महोदय के परिचय के साथ वजह खुद ब खुद साफ़ हो जाती है केंद्र सरकार में दूरसंचार विभाग की बागडोर संभालने वाले DMK के इस युवा मंत्री का नाम है "ए राजा", DMK प्रमुख करूणानिधि के विश्वस्त माने जाने वाले "राजा" एक दलित नेता तो है ही साथ ही उनके लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते है क्योंकि उन्होंने ही उनके परिवार को आतंरिक कलह से अब तक दूर रखा है l दलित वोट बैंक राजा से खटास करूणानिधि को न सिर्फ राजनीतिक तौर पर भारी पड़ सकती है बल्कि यह उनके परिवार में टूट की वजह भी बन सकती है
जहाँ तक कांग्रेस का सवाल है, राजा पर कोई भी कड़ा फैसला सरकार के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है और पहले से ही राष्ट्रमंडल खेलों और आदर्श सोसाइटी जैसे बड़े घोटालों के दलदल में फसीं यह पार्टी अभी मध्यावधि चुनावों का खतरा मोल नहीं ले सकती .. जयललिता के समर्थन प्रस्ताव ने राष्ट्रीय नेतृत्व को थोड़ी राहत तो जरूर दी होगी पर यह सब इतना आसान नहीं होगा ..

छोड़िए इन सब बातों को यह सब तो आप को किसी समाचार चैनल के 15 मिनट के बुलेटिन में मिल जाएँगी पर क्या आपने यह जानने की कोशिश करी है की क्यों विवश हो जाती है सरकारें एक नेता के सामने ? क्यों झुक जाती है वे उनकी नाजायज़ मांगो के सामने और रख देती है राष्ट्रीय हितों को ताक़ पर ?? उलझ गए आप, कुछ समझ नहीं आ रहा, उत्तर साफ़ है ये सब होता है आपकी वजह से, हम सब की वजह से, हम बनाते है ऐसे लोगों को शक्तिशाली हमारा स्वार्थ देता है उनको ताकत क्योंकि हम चाहते है अपनी जाति के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण, सरकारी महकमे में उनकी सिफारिश, पद्दोनात्ति के लिए उनका हाथ, सरकारी ठेके पाने के लिए उनकी दखलंदाजी और सबसे बड़ी वजह है धर्म तथा जाति आधारित हमारी संकीर्ण मानसिकता और जनता के नौकर जल्द ही बन जाते है जनता के "राजा"

ऐसे "राजा" जन्म लेते रहे हैं और लेते रहेंगे जब तक हमारे जैसे लोग भ्रष्टाचार का हिस्सा बनते रहेंगे और अपनी जिम्मेवारी से मुहं फेरकर दफ्तरों, नाई की दुकानों और पान के खोकों पर नेताओ को दोष देते रहेंगे

5 comments:

  1. सोनिया गाँधी- केंद्र सरकार- कांग्रेस पार्टी और मेरा बेचारा देश- तारकेश्वर गिरी.
    भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति आज किसी दुसरे देश में ना तो प्रधान मंत्री हैं और ना ही राष्ट्रपति, दूसरी बात ये हैं कि जिस पद पर सोनिया आसीन हैं , उनसे ज्यादा विद्वान नेता और भी हैं इंतजार में कि कब उन्हें मौका मिले. एक दो को छोड़ दे तो आज तक कांग्रेस ने सिर्फ नेहरू के वन्सजो को ही प्रधान मंत्री बनने का मौका दिया हैं, और आगे भी सारे कांग्रेसी राहुल कि तरफ नज़र गडाए हुए हैं. बहुत से ऐसे सवाल हैं जो सोनिया गाँधी को कटघरे में खड़े करते हैं.

    मसलन कि बोफोर्स घोटाले का मुख्या आरोपी का छुट जाना, संसद में हुए हमले के आरोपी को सुनाई गई फांसी कि सजा पर अमल ना होना, हिंदुस्तान में रह करके सिर्फ मुसलमानों का साथ देना , हिन्दू विरोधी बात करना, राम सेतु को ये कहना कि ये सेतु नहीं हैं बल्कि रेत का ढेर जमा हुआ हैं.

    आज हमारे देश का सौभाग्य हैं कि हमें एक पढ़ा लिखा और समझदार प्रधान मंत्री मिला हुआ हैं, सब तरह के घोटालो से दूर, एक साफ सुथरी तस्वीर के रूप में श्रीमान मनमोहन सिंह. लेकिन वो भी सोनिया नामक बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं, और अपना सारा का सारा ज्ञान सोनिया जी कि जी हजुरी में खर्च कर रहे हैं. वो अलग बात हैं कि ज्ञान खर्च करने से बढ़ता हैं.

    जनता का क्या वो तो एक भीड़ हैं , और वो भी बिलकुल भेड़ कि तरह. बचपन में एक कहावत सुनी थी कि एक भेड़ के पीछे सारी भेड़ चलती हैं, और अगर रस्ते में कुआँ आ जाये और अगर एक भी भेड़ गिर जाये तो पीछे -पीछे सारी भेड़े कुंए में गिर जाती हैं.


    Apka Swagat hai

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  2. सोचिए एक ही दल का शासन होता तो वह कितना निरंकुश होता। कोई बोलने वाला भी न मिलता।

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  3. यह तो सब कुर्सी का खेल है?

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  4. Anandji.... Bahut sahi aur sateek vishay....
    yeh poore desh ke ghatak hai aur afsosjanak bhi.....

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