सब भारतीय एक ही सपने के साथ बड़े होते हैं, अच्छी शिक्षा और फिर एक मोटी कमाई के साथ ऊंचे ओहदे वाली नौकरी, और अनजाने में ही सही पर यही हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य हो जाता है
मोहल्ले का हर दूसरा पिता अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजिनीयर बनाना चाहता है और शुरू हो जाता है बड़े कॉलेजों में दाखिला पाने की जुगत का खेल ....स्कूल तथा कॉलेजों में विषयों का चुनाव व्यक्तिगत रूचि पर आधारित नहीं होता अपितु नौकरियों के सर्वाधिक अवसर उपलब्ध करने वाला विषय तथा क्षेत्र सभी की पहली पसंद बन जाता है केम्पस में हर ओर गधों का मेला सा नज़र आता है, जो अपने कंधो पर समाज की आकांक्षाओं का बोझ ढो रहे है जमाने के साथ दौड़ने की होड़ में अन्दर कहीं किसी कोने में छिपा कलाकार बहुत पीछे छूट जाता है,
कई बेनाम कवियों की रचनाएं विज्ञान की कॉपी के अंतिम प्रष्टों में दम तोड़ देती है गणित के समीकरणों से अनजान चित्रकार कक्षा की खिड़की से बाहर दूर गगन में सफ़ेद रुई के गुच्छों में कल्पना के रंग भरते रह जाते हैं, ट्यूशन जाते हुए सड़क के किनारे पड़े पेप्सी, कोक के टीन के डिब्बे फुटबाल और क्रिकेट का शौक पूरा करते है शयनकक्ष की दीवार पर टंगा आइना, कुछ मायूस अभिनेताओं के अभिनय का साक्षी बनता है अकाउंट्स की किताबों से दुश्मनी रखने वाले गायकों के सुर गुसलखाने की चार दीवारी में ही गूंजते है अभियांत्रिकी छात्रावास की छत पर समाज बदलने की बातें करने वाले क्रांतिकारी लेखकों की पंक्तिया विश्विद्यालय की वार्षिक पत्रिका तक सिमट कर रह जाती है
कौन है इन सब के लिए जिम्मेवार ?? क्या वो पिता जो रोज़ बसों में धक्के खाता, अपने बच्चों के अच्छे भविष्य का ख्वाब देखते हुए दफ्तर पहुँच जाता है या वो माँ जो दो साड़ियों में अपना जीवन बिना किसी अफ़सोस के बिता देती है ...????
दोष देना है तो दीजिये उस समाज को, उस व्यवस्था को जहाँ आँखों पर मोटा चश्मा लगाये हाथ में बड़ी सी किताब लिए एक बच्चा सबकी आँखों का तारा होता है और वही घर के सामने के मैदान में छक्के-चोक्के लगाते दूसरे को सभी तिरस्कृत नज़रों से देखते हैं
याद रखिये सृष्टि के रचियता ने प्रत्येक मनुष्य को भिन्न-भिन्न क्षमताएं तथा योग्यताएं दी है किसी के गले को सुर दिए तो किसी के हाथों में तस्वीरें उकेरने का हुनर, कुछ में अंको तथा समीकरणों से जूझने का जूनून दिया तो कुछ न्यूटन और आइन्स्टीन के नियमो से खेलने की काबलियत...
अभी भी समय है मत रोकिये उनकी कल्पनाओं की उड़ान को, रंगने दो उन्हें अपने ख़्वाबों को... तभी मिलेगा उनके अस्तित्व को एक "अर्थ"
kya baat hai bhatia sa'ab cha gaye...
ReplyDeleteboss, mere bachho ko me nahi rokuga... wo wahi banege jo unme hunar hoga.
ReplyDeletebahut hi gahan and sahi vichar he
ReplyDeleteTussi great ho anand baba...!!
ReplyDeleteati-uttam ..:)):))
सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है की बच्चा शुरू में यह सोचता है की उसके पिता ने उसे अपनी मर्जी से कुछ नहीं करने दिया.
ReplyDeleteलेकिन एक दिन जब वह खुद पिता बनता है तो वो भी उसी गलती को दोहराता है,
इस यह क्रम इसी प्रकार चला आ रहा है.
Neetin SHarma
ReplyDeleteBhatia ji Awesome thoughts and excellent way you change the words and compose it ..........Ultimate
Jo kuchh aapne likha woh tathya hain.. samiksha athva vishleshan ke pare!! Isliye mere kehne yogya visheh kuchh nahi bachta..
ReplyDeleteApki lekhni shaktishali hai..shabdo ka chayan sateek hai..
bhavishya main aur lekh padhne ki ichha rahegi :)