Tuesday, April 2, 2013

मेरा गाँव मेरा देश

हमारा मोहल्ला कुछ अलग ना था, हर तरह के लोग और हर तरह के मकान, कुछ शानदार रंग-रोगन वाले जेंटलमैन मकान जिनके बाहर खड़ी मारुती 800 उनकी शान में चार चाँद लगाती थी तो कुछ गरीब बदहाल मकान, जिनकी मैली दीवारें किसी लुटे पिटे आशिक की याद दिला देती थी खड्डेदार सड़कें जिन पर दुपहिया चलना किसी विडियो गेम के तीसरे लेवल को पार करने जैसा होता था वहीँ प्लास्टिक की थेलियों से अटी पड़ी नालियों से सड़क पर बहता पानी देख कोई नहीं कह सकता था की इस मोहल्ले में दो दिन में एक बार एक घंटे के लिए नल देवता पानी की वर्षा करते है शाम होते ही इन्ही सड़कों पर ईंटे लगा कर मोहल्ले के बच्चे क्रिकेट भी खेल लिया करते थे


मोहल्ला पुराना था इसलिए लगभग हर प्लाट पर मकान खड़ा था सिवाय एक कार्नर वाले प्लाट के, जिसे बरसों पहले उसके मालिक ने सिर्फ उसकी चारदीवारी बना कर छोड़ दिया था फिर ना मालिक दिखा ना कोई खेर खबर रखने वाला वक़्त के साथ चारदीवारी जगह-जगह से टूट गयी थी पहले कुछ दिन पडोसी शर्म खाते थे पर जल्द ही उनकी शर्म की बाड़ टूट गयी पहले किसी एक ने और फिर सभी आसपास वालों ने उस प्लाट पर कचरा कूड़ा करकट फेकना शुरू कर दिया कुछ ही महीनों में वह जमीन बड़े साइज़ के कचरे के डिब्बे में तब्दील हो चुकी थी गन्दगी बढ़ी तो चूहे आये, बहुत सारे चूहे, कुत्ते कुत्तियों ने वहां अपना परिवार बढ़ाना शुरू कर दिया एक बार तो अपनी गेंद उठाने गए एक बच्चे को कुत्ते ने काट भी लिया था बच्चों ने वहां खेलना छोड़ दिया, खेलने के लिए दूर किसी जगह जाने लगे एक तरफ कुत्ते तो दूसरी तरफ चूहों ने अपने कारनामों से हडकंप मचा रखा था घरों में अब कुछ भी सुरक्षित नहीं था बच्चों के किताबों से लेकर घर के गद्दे तकियों तक में चूहों ने सुराख कर दिए थे चूहा मारने वाली दवाओं की बिक्री बढ रही थी पर एक मरता था तो दस ना जाने कहाँ से आ जाते थे पर वहां कचरा डालना बदुस्तूर जारी रहा कचरे की बदबू दिन ब दिन बढती ही जा रही थी रास्ते से गुजरने वाले हर शख्स को अब नाक पर रुमाल रखना पड़ रहा था भयानक दुर्गन्ध ने जीना मुश्किल कर दिया था लोग अब अपने घरों के दरवाजे खिड़कियाँ बंद रखा करते थे जल्द ही
बारिशें शुरू हो गयी पानी और कचरे के मिलन ने मच्छरों को जन्म दिया और मच्छरों ने फॅमिली प्लानिंग के सभी उपदेशों को दरकिनार करते हुए अपनी जमात को चारों और फैला दिया मच्छरों ने बीमारियों की आसपास के हर घर में होम डिलीवरी करना शुरू कर दिया, बच्चे हो या बुजुर्ग कोई मलेरिया की तो कोई किसी अन्य बिमारी की चपेट में आने लगे लोग परेशान थे समझ नहीं पा रहे थे की क्या करे

फिर एक दिन मोहल्ले के ही एक बुजुर्ग जिन्हें बैंक की अपनी नौकरी से रिटायर हुए दस साल बीत चुके थे ने आस पास के लोगो को बुला कर समझाया और कचरा हटवा उस प्लाट की सफाई करवाने के लिए राज़ी किया कचरा हटवाया गया, साफ़ सफाई भी हुई नगर निगम में अर्जी देकर बड़े कचरे की डिब्बे हर नुक्कड़ पर लगवाये गए धीरे-धीरे बदलाव आया मच्छर और चूहों को नगर निगम की दवाइयों ने मारा और कुत्तों ने परिवार सहित कहीं दूर चले जाना ही बेहतर समझा अब सब खुश थे और मन ही मन उस बुजुर्ग को धन्यवाद दे रहे थे

बात छोटी सी है मगर बहुत काम की हमारा समाज, देश हो या विश्व सब उस मोहल्ले की तरह है हम अकेले प्रगति कर, दूसरों को पीछे असहाय बदहाल छोड़ उस प्रगति का पूरा मज़ा नहीं ले सकते फिर चाहे समाज हो या देश भूखा बेबस आदमी गलत रास्ते अपनाएगा अराजकता बढेगी अपराध बढेंगे वहीँ दूसरी तरफ वैश्विक स्तर की बात करें तो गरीब पिछड़े देश आतंकवादियों और कट्टरपंथियों की कारखाने बन जाते है इतिहास गवाह है की अत्यधिक पीड़ित व्यक्ति और समाज तबाही की वजह बनता है कुल मिलाकर कहा जाए तो एकल विकास के कोई मायने नहीं है सम्पूर्ण विकास के लिए सभी की खुशहाली बेहद जरूरी है समाज और देश की प्रगति में अपनी भागीदारी निभाये अपना टैक्स भरकर और किसी सामाजिक संस्था से जुड़कर जरुरतमंदों की मदद के लिए आगे आये

No comments:

Post a Comment