Friday, September 6, 2013

Mercedes वाले बाबा

बाबाओं की भीड़ लगी है, केदारनाथ से सोमनाथ तक, मथुरा से काशी तक हर तरफ बाबा ही बाबा। कुछ गेरुए रंग में ढके तो कुछ सफ़ेद सफ़ेद रंग ओढे।  किसी के पीछे चेले चपाटों की भीड़ तो कुछ भीड़ से दूर कहीं एकांत में ना जाने क्या खोज रहे हैं। कुछ प्राइवेट tution टीचर की तरह धर्म का अजब गजब ज्ञान बांटने की fees वसूलने में लगे हैं तो कुछ free service भी दे रहे है। पर असल बात तो ये है हम भी बड़ी दूकान देख कर ही माल खरीदते हैं। वेद पुराण लिखने वाले author कब के निकल लिए पर उनमें छिपे सत्य से हमारा साक्षात्कार कराने का जिम्मा अब इन्ही tutor बाबाओं ने अपने कंधे पर ले लिया है। धर्म का पूरा बाज़ार सजा हुआ है, अलग-अलग तरह की दुकाने जहाँ आपकी हैसियत के हिसाब से ईश्वर की कृपा नसीब होती है। कोई हरी चटनी के साथ समोसा खिला कर कृपा बाँट रहा है, तो कोई सफ़ेद कपडे पहन नाच-नाच कर जीवन जीने की कला सीखा रहा है। पर इन सबमें कुछ बातें कॉमन है सब के सब आलिशान बंगलों में रहते है, महंगी गाड़ियों में घूमते हैं, करोड़ों अरबों के आश्रमों के मालिक हैं।  Internet पर इनकी वेबसाइट होती है facebook और twitter पर इनके अकाउंट और लाखों करोड़ों की तादाद में followers, जो सुबह उठ कर भगवान् के आगे मत्था झुकाने से पहले इनके updates पढ़ते हैं। कईयों की मार्केटिंग में तो IIM ग्रेजुएट्स भी लगे है, जो event मैनेजमेंट से लेकर इनकी image मैनेजमेंट तक का सारा काम देखते हैं।  इनमें से कईयों ने अपने बेटा बेटियों को भी फॅमिली बिज़नस का हिस्सा बना उनका career भी सेट कर दिया है।
इनकी दूकान चल रही है और सब कुछ जानते बुझते हम चला रहे है। ऐसा नहीं की हम बेवकूफ या नादान है या हमे कुछ पता नहीं है पर हम सताए हुए है, दुखी है, निराश है, दर्द कूट कूट कर भरा है, हम में, विश्वास हिल सा जाता है और पहुँच जाते है दुखों की दवा तलाशते हुए और फिर हमारी समझ पर हमारा दर्द हावी हो जाता है, ये बोलते हैं हम सुनते है और धीरे धीरे इन्हें देवदूत मान पूजने लगते है। ये इंसान से खुदा बन जाते है और हम असली खुदा को ही भूल जाते है। दुःख और तकलीफें तो वहीं की वहीं रह जाती हैं।
हमे समझना होगा थोडा विचारना होगा की बड़े-बड़े पांडाल सजा कर एंट्री फीस लगा कर मोक्ष का अजीब मार्ग दिखाने वाले ऐसे ढोंगी लोग ईश्वर नहीं है ना ही सच्चे गुरु क्योंकि जो ज्ञानी है, संत हैं, महात्मा है, वे तो लोभ मोह की इस दुनिया से दूर हैं, वे आपको पांच सितारा पंडालों वाले इन गुरु घंटालों की जमात में नहीं मिलेंगे।
गुरु तो वो है जो ईश्वर का मार्ग दिखाए ना की वो जो खुद को ईश्वर बताये।
कबीरदास ने कहा है ….
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

Tuesday, April 2, 2013

मेरा गाँव मेरा देश

हमारा मोहल्ला कुछ अलग ना था, हर तरह के लोग और हर तरह के मकान, कुछ शानदार रंग-रोगन वाले जेंटलमैन मकान जिनके बाहर खड़ी मारुती 800 उनकी शान में चार चाँद लगाती थी तो कुछ गरीब बदहाल मकान, जिनकी मैली दीवारें किसी लुटे पिटे आशिक की याद दिला देती थी खड्डेदार सड़कें जिन पर दुपहिया चलना किसी विडियो गेम के तीसरे लेवल को पार करने जैसा होता था वहीँ प्लास्टिक की थेलियों से अटी पड़ी नालियों से सड़क पर बहता पानी देख कोई नहीं कह सकता था की इस मोहल्ले में दो दिन में एक बार एक घंटे के लिए नल देवता पानी की वर्षा करते है शाम होते ही इन्ही सड़कों पर ईंटे लगा कर मोहल्ले के बच्चे क्रिकेट भी खेल लिया करते थे


मोहल्ला पुराना था इसलिए लगभग हर प्लाट पर मकान खड़ा था सिवाय एक कार्नर वाले प्लाट के, जिसे बरसों पहले उसके मालिक ने सिर्फ उसकी चारदीवारी बना कर छोड़ दिया था फिर ना मालिक दिखा ना कोई खेर खबर रखने वाला वक़्त के साथ चारदीवारी जगह-जगह से टूट गयी थी पहले कुछ दिन पडोसी शर्म खाते थे पर जल्द ही उनकी शर्म की बाड़ टूट गयी पहले किसी एक ने और फिर सभी आसपास वालों ने उस प्लाट पर कचरा कूड़ा करकट फेकना शुरू कर दिया कुछ ही महीनों में वह जमीन बड़े साइज़ के कचरे के डिब्बे में तब्दील हो चुकी थी गन्दगी बढ़ी तो चूहे आये, बहुत सारे चूहे, कुत्ते कुत्तियों ने वहां अपना परिवार बढ़ाना शुरू कर दिया एक बार तो अपनी गेंद उठाने गए एक बच्चे को कुत्ते ने काट भी लिया था बच्चों ने वहां खेलना छोड़ दिया, खेलने के लिए दूर किसी जगह जाने लगे एक तरफ कुत्ते तो दूसरी तरफ चूहों ने अपने कारनामों से हडकंप मचा रखा था घरों में अब कुछ भी सुरक्षित नहीं था बच्चों के किताबों से लेकर घर के गद्दे तकियों तक में चूहों ने सुराख कर दिए थे चूहा मारने वाली दवाओं की बिक्री बढ रही थी पर एक मरता था तो दस ना जाने कहाँ से आ जाते थे पर वहां कचरा डालना बदुस्तूर जारी रहा कचरे की बदबू दिन ब दिन बढती ही जा रही थी रास्ते से गुजरने वाले हर शख्स को अब नाक पर रुमाल रखना पड़ रहा था भयानक दुर्गन्ध ने जीना मुश्किल कर दिया था लोग अब अपने घरों के दरवाजे खिड़कियाँ बंद रखा करते थे जल्द ही
बारिशें शुरू हो गयी पानी और कचरे के मिलन ने मच्छरों को जन्म दिया और मच्छरों ने फॅमिली प्लानिंग के सभी उपदेशों को दरकिनार करते हुए अपनी जमात को चारों और फैला दिया मच्छरों ने बीमारियों की आसपास के हर घर में होम डिलीवरी करना शुरू कर दिया, बच्चे हो या बुजुर्ग कोई मलेरिया की तो कोई किसी अन्य बिमारी की चपेट में आने लगे लोग परेशान थे समझ नहीं पा रहे थे की क्या करे

फिर एक दिन मोहल्ले के ही एक बुजुर्ग जिन्हें बैंक की अपनी नौकरी से रिटायर हुए दस साल बीत चुके थे ने आस पास के लोगो को बुला कर समझाया और कचरा हटवा उस प्लाट की सफाई करवाने के लिए राज़ी किया कचरा हटवाया गया, साफ़ सफाई भी हुई नगर निगम में अर्जी देकर बड़े कचरे की डिब्बे हर नुक्कड़ पर लगवाये गए धीरे-धीरे बदलाव आया मच्छर और चूहों को नगर निगम की दवाइयों ने मारा और कुत्तों ने परिवार सहित कहीं दूर चले जाना ही बेहतर समझा अब सब खुश थे और मन ही मन उस बुजुर्ग को धन्यवाद दे रहे थे

बात छोटी सी है मगर बहुत काम की हमारा समाज, देश हो या विश्व सब उस मोहल्ले की तरह है हम अकेले प्रगति कर, दूसरों को पीछे असहाय बदहाल छोड़ उस प्रगति का पूरा मज़ा नहीं ले सकते फिर चाहे समाज हो या देश भूखा बेबस आदमी गलत रास्ते अपनाएगा अराजकता बढेगी अपराध बढेंगे वहीँ दूसरी तरफ वैश्विक स्तर की बात करें तो गरीब पिछड़े देश आतंकवादियों और कट्टरपंथियों की कारखाने बन जाते है इतिहास गवाह है की अत्यधिक पीड़ित व्यक्ति और समाज तबाही की वजह बनता है कुल मिलाकर कहा जाए तो एकल विकास के कोई मायने नहीं है सम्पूर्ण विकास के लिए सभी की खुशहाली बेहद जरूरी है समाज और देश की प्रगति में अपनी भागीदारी निभाये अपना टैक्स भरकर और किसी सामाजिक संस्था से जुड़कर जरुरतमंदों की मदद के लिए आगे आये

Saturday, January 19, 2013

जिम्मेदार कौन ?

पिछले दिनों दिल्ली में हुए बलात्कार काण्ड ने इस मुल्क के हर बाशिंदे की रूह को झकझोर कर रख दिया, समाज के हर वर्ग के लोगों से लेकर राजनैतिक हल्कों में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाने की मांग जोर पकड़ने लगी हर कोई इस काण्ड की बर्बरता देख सकते में है जहाँ एक ओर इस जघन्य अपराध ने इंसानियत को शर्मसार किया वहीं दूसरी ओर इसने समाज के समक्ष कई सवाल खड़े कर दिए आखिरकार इस अपराध के लिए जिम्मेदार कौन है ? क्या वे छह जने जिन्होंने इस अपराध को अंजाम दिया या वो पुलिस जिस पर किंकर्तव्यविमूढ होने का आरोप लगा सारा ठीकरा फोड़ा जा रहा है हकीकत इसके उलट है असल में इस तथाकथित सभ्य समाज के भय ने महिलाओं को आसान शिकार और हमारे शहरों को अपराधियों का आखेट स्थल बना दिया है 

कहीं भी चले जाइये आम माध्यम वर्गीय आदमी इस भुलावे में जीता है की बुद्धू बक्से की ख़बरों में दिखाई जाने वाली घटनाएं जिन अभागों के साथ होती हैं वे अलग ही होते है ऐसा कुछ उसके साथ कभी नहीं हो सकता वह तो धार्मिक है और ईश्वर में पूरी आस्था रखता है नित्य भगवान् का नाम जपना और पूजा करना भी नहीं भूलता तो निश्चित रूप से ऐसा कोई वाक्या उसके साथ तो हो ही नहीं सकता ईश्वर इतना निष्ठुर नहीं है पर हम भूल जाते हैं की दरिंदगी के शिकार हुए वो बदकिस्मत लोग परग्रही नहीं होते वे इसी दुनिया का हिस्सा होते है हमारी यही सोच अपराध का शिकार हुए व्यक्तियों को समाज से अलग थलग कर देती है वे या तो सामाजिक उपेक्षा के डर से आवाज़ नहीं उठाते या लम्बी कानूनी लड़ाई के बीच ही मानसिक यातनाओं से हिम्मत हार जाते हैं हमारी उपेक्षा उनके दर्द को कई गुना बड़ा देती है  

ऐसी घटनाओं की कमी नहीं है जब अपराध को होता हुआ देख भी सेकड़ों की भीड़ मौन बनी रही समाज की यह मौन स्वीकृति अपराधियों का मनोबल बढाती है अपराधियों का विरोध करना तो दूर की बात हम तो घायलों की मदद को भी आगे नहीं बढ़ते और अपने बच्चों को भी ऐसे झमेलों से दूर रहने की सलाह दे डालते है समाज एकजुट हो अपराध की खिलाफत को उतर जाए तो किसी महिला पर बुरी नज़र डालना तो दूर की बात कोई बदमाश किसी बच्चे का खिलौना नहीं छीन सकता 

निर्भया को उन छह जनों ने मारा है तो उसकी मौत के लिए वे तमाशबीन भी जिम्मेदार थे जो सड़क पर पड़ी उस असहाय बच्ची को देखते रहे पर किसी ने भी उसे वक़्त रहते अस्पताल ले जाने की जेहमत नहीं उठायी हज़ारों हाथों ने मोमबत्तियां जलाई पर एक हाथ उसकी मदद को आगे नहीं आया ये इस समाज की त्रासदी है ये होता आया है और आगे भी होता रहेगा जब तक आप और हम जैसे लोग अपना मौन नहीं तोड़ते जुर्म की खिलाफत नहीं करते और दर्द झेल रहे उस इंसान के साथ खड़े नहीं होते क्योंकि याद रखिये किसी नास्त्रेदमस ने यह भविष्यवाणी नहीं करी की ऐसा आपके साथ नहीं हो सकता