Saturday, December 3, 2011
हल्ला "FDI" का
खबरिया चैनलों से लेकर सत्ता के गलियारों तक आजकल हर कोई FDI का राग अलाप रहा है, कुछ आठवी फ़ैल नेता भी अर्थशास्त्रियों से बढकर बयान दे रहे हैं, तो कुछ तथाकथित सामजिक कार्यकर्ता किसानों की दुर्दशा की दुहाई दे रहे है
इनमें से बहुतों को FDI का मतलब नहीं पता तो कुछ तो ऐसे हैं जो FBI और FDI में भ्रमित हो सर खुजाने लगते है
सरकार के सहयोगी हो या विपक्षी दल सभी ने इस आग में हाथ सेकने की तैयारी कर ली है
विषय वाकई गंभीर है और चर्चा के योग्य है जिस देश में महंगाई और बेरोज़गारी एक सदाबहार चुनावी मुद्दा रही हो, जहाँ हर गली के नुक्कड़ पर खुली किराने की दुकाने और घर-घर जाकर तरकारी बेचने वाले ठेले करोड़ों गरीब परिवारों को दो जून की रोटी दे रहे हो उस देश के लिए वाकई ये एक गंभीर मसला है
अधिकाँश लोग और संगठन किसानों के हालतों का मुद्दा उठा रहे है उन्हें चिंता है की विदेशी कंपनियों के आ जाने से किसानो की मुश्किलें और बढेंगी, सोचने वाली बात यह है की आजादी के 60 साल बाद भी अगर विदर्भ और देश के अन्य भागों में किसान आत्महत्या करते है उनके अनाथ बच्चों के आंसुओं के लिए कौन जिम्मेवार है..? WALMART के आ जाने के बाद इस से बदतर क्या होगा ? इसके उलट इस सरकारी कदम से बिचोलियों और आडतियों की मनमानी पर लगाम लगा सकती है और किसानों का कुछ भला हो सकता है
परन्तु नुकसान होगा उन छोटे और मंझोले दुकानदारों और उद्योगों का जिन्हें माल खरीदने के लिए महंगा कर्ज लेना पड़ता है जिस से लागत बढ जाती है और फिर विक्रय मूल्य ... साथ ही ये विदेशी "किराने की दुकाने" अपनी मजबूत आपूर्ति श्रंखला के जरिये दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के सस्ते और चालु माल से हमारे बाजारों को भर देंगी तब इन छोटे व्यापारियों के पास अपनी दूकान समटने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा
खिलोनों से लेकर सस्ते मोबाइल बनाने वाले चीनी सामानों ने पहले ही हमारी बहुत सी लघु ओद्योगिक इकाइयों पर ताले लगवा दिए है उस पर इन विदेशी खुदरा व्यापारियों को न्योता देना खुद के पेरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा
भारत जैसे विकासशील देश में विदेशी दुकानों का स्वागत इसी शर्त पर किया जाना चाहिए की उनमें बिकने वाला अस्सी प्रतिशत माल स्वदेशी हो ताकि बाजार में स्वस्थ स्पर्धा को बढावा मिले साथ ही देसी उद्योग धंदो को लाभ पहुंचे
कुल मिलकर वैश्वीकरण के इस युग में बाज़ार में सवस्थ प्रतिस्पर्धा का जरूरी है पर साथ ही देशी उद्यमों को फलने फूलने के बराबर मौके होने चाहिए तभी हम एक विकसित राष्ट्र का सपना देख पायेंगे ..
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Swadesi; and how do you define it... Would you call gross domestic product as swadesi or gross national product as swadesi... or something else?
ReplyDeleteTraditionalists define Swadesi as goods/services produced by Indian companies (indian ownership in parent company must be 76% or more) in India. If you stick to that definition then all HUL/P&G products become Videshi; and thus, not more than 40% stuff in our local domestic shops is Swadesi, let alone 80%.
aj bhi "made in USA" ya bahar ke adhikansh saman ke naam par jitna bhi taiyar kiya jata hai, wo hum bhartiyo dwara hi banaya jata hai,china ne bhi gujrat ke karigaro ki nakal kar ke apni dukane chalayi hai.
ReplyDeleteparantu firangi thappa laga kar uske daam dugne ya chugune ho jate hai.
Itni badi galti Jahangir ke zamane me bhi hui thi, tab bhi videshi vyapari hi ban kar aye the
tabhi kaha gaya tha" Lamho ne khata ki thi sadiyo ne saza payi hai"
isiliye FDI ke mudde ko har tarah se parakh kar koi nirnay lena hoga....
par hum jante hai,hamri sarkar itni vilakhan hai ki ise bhi paas kara hi legi
bhatia ji kafi dino se aapke blog par kuch naya nahi aya?
ReplyDeletebahut umda vichar he aap ke.. sahi likhte ho..
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