Saturday, August 18, 2012

बरसाती मेंडक



"बरसाती मेंडक" ये अलफ़ाज़ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में छाए हुए थे वैसे आपकी जानकारी के लिए बताये देते हैं की बरसाती मेंडक का अर्थ उन चरित्र विशेष के व्यक्तियों से है जो किसी विशेष अवसर पर ही दर्शन देते हैं आमतौर पर ऐसे महानुभावों के दर्शन दुर्लभ ही होते हैं चलिए हम अपने विषय से ना भटकते हुए हाल ही में संपन्न उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में इस प्रजाति की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं असल में एक चुनावी सभा के बाद मिडिया से अनौपचारिक बातचीत के दौरान हमारी "राष्ट्र पुत्री" श्रीमती प्रियंका वाड्रा ने खिलखिलाते हुए स्वर में कहा की उन्हें इस बात से गुरेज नहीं की उन्हें बरसाती मेंडक कहा जाए पर राहुल गाँधी (राष्ट्र पुत्र) को ऐसा कहना गलत होगा क्योंकि वे तो लगातार गरीबों, किसानों आदि की दबी आवाज़ को उठा प्रदेश सरकार के कानों तक पंहुचा रहे हैं

ऐसा नहीं की सिर्फ प्रियंका अपने बहिन होने का फ़र्ज़ अदा कर रही थी उस वक़्त तो कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा नेता राहुल भैया की शान में कसीदे गड़ने में लगा था कोई उन्हें महान जन नायक बता रहा था तो कोई क्या, एक ने तो बातों ही बातों में प्रधानमंत्री की कुर्सी भी उन्हें सौंप दी थी एक अलग ही होड़ सी लगी थी चाटुकारिता की

चुनाव निपट गए परिणाम भी आ गए अपने कबूल नामे के अनुसार प्रियंका फिर गायब हो गयी पर उनके दावे के उलट गरीब किसानों के मसीहा राहुल बाबा भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे एक ओर जहाँ देश का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में है, आर्थिक मोर्चे पर हालत बाद से बदतर हो रहे है, पुणे में ब्लास्ट हो गए, जातीय हिंसा की आग असम जल रहा है पर कांग्रेस के युवराज नदारद हैं क्या उनकी स्कूली किताबों में देश क्या सिर्फ भट्टा पारसोल तक ही सीमित है क्या उत्तर प्रदेश ही इस देश के नक़्शे में एक मात्र राज्य है इस लेख पर "दिग्गी राजा" की दृष्टि पद जाए तो वे पहली प्रतिक्रिया में ही लेखक को कांग्रेस विरोधी या RSS का नुमाइंदा करार कर दे पर यहाँ ये प्रश्न उठाना स्वाभाविक है की जिस व्यक्ति को देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर प्रचारित किया जा रहा हो उसे असम का नरसंहार, मुंबई की हिंसा, पूर्वोत्तर के लोगों का दर्द क्यों दिखाई नहीं देता ? क्यों वो इन सब मुद्दों पर खामोश नज़र आते है अलबत्ता ये कहना ठीक होगा की नज़र ही नहीं आते हैं भट्टा पारसोल तथा उत्तर प्रदेश के प्रति इतनी संवेदनशीलता पर विदर्भ के किसानों की बढती आत्महत्याओं की खबरे आपको विचलित क्यों नहीं कर पाती ?

इतना सब देख सुन लेने के बाद तो प्रियंका का ये कहना की राहुल "बरसाती मेंडक" नहीं हैं हास्यास्पद ही लगता है ... आज इस देश को जरुरत है प्रगतिशील सोच वाले युवा नेतृत्व की जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक बदलाव की बयार बहा सके, "गाँधी" होने की वजह से राहुल के पास ये स्वाभाविक मौका भी है और अगर वे सच में कुछ सही करना चाहते हैं तो दिग्गी के लिखे बयानों को तोते की तरह पड़ना छोड़ उन्हें अब जमीनी हकीकत से वाकिफ होना होगा तब कहीं जाकर वे नहीं कहलायेंगे "बरसाती मेंडक" .....




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