Saturday, August 25, 2012

घोटाला या घाटा



आजकल अखबार हो या खबरिया चैनल या फिर लोकतंत्र का नया स्तम्भ कहे जाने वाला सोशल मीडिया यानी की फेसबुक ट्विट्टर आदि हर कहीं CAG की रिपोर्ट्स की ही चर्चा गर्म है 2G CWG से लेकर अभी हालिया कोयला ब्लाक आवंटन मामले पर इसकी रिपोर्टस ने सरकार को अन्दर से हिला कर रख दिया है पिछले 2-3 सालों की बात करी जाए तो CAG इस देश में एक परोक्ष विपक्ष की भूमिका बखूभी निभा रही है एक और जहा सरकार की नींद हराम हो रही है वही कोयला ब्लाक मामले में इसकी रपट ने विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारों को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है


सही मायनों में स्थिति उतनी भी साफ़ नहीं जितनी की प्रतीत होती है मीडिया और विपक्ष जिसे घोटाले की संज्ञा दे रहा है क्या वाकई ये एक घोटाला है खुद CAG की रपट में भी कहीं घोटाले शब्द का उपयोग नहीं किया गया है हर जगह सरकारी खजाने को हुए उस नुकसान के बारे में ही बताया गया है जो नीलामी ना होने की वजह से हुआ सही मायनों में हमें घाटे और घोटाले के बीच की अंतर को समझना होगा

ऊपर की कुछ पंक्तियाँ पढ आप ये अंदाजा ना लगाए की लेखक कांग्रेस का हितेषी या देश का अहित चाहने वाला शख्स है प्रयास सिर्फ इस मुद्दे को समझना मात्र है इस विषय  को सरलता से समझने लिए कुछ उदाहरणों की मदद लेना सही रहेगा मसलन fertilizers को ही लीजिये सरकार इसके मूल्य को गरीब किसान की पहुँच में बनाये रखने के लिए भारी सब्सिडी देती है हर साल सरकारी खजाने का एक बड़ा हिस्सा इस सब्सिडी की भेंट चढ़ जाता है फिर भी ये जारी है और निकट भविष्य में इसके ख़त्म किये जाने की कोई सम्भावना नहीं है देखा जाए तो सरकारी सब्सिडी को खत्म कर सरकारी खजाने को भरा जा सकता है पर फिर भी लाभ-हानि के गणित के विपरीत यह विषय सामाजिक सरोकारों से जुड़ा है कुछ यही हाल हमारे घर की रसोई में काम में आने वाली रसोई गैस का भी है यदि सरकारी सब्सिडी खत्म कर दी जाए तो आप एक सिलिंडर के लिए दुगने से ज्यादा दाम चुका रहे होते उपरोक्त दोनों ही उदाहरणों से ये बात तो साफ़ हो जाती है की यहाँ पर घाटा हो रहा है घोटाला नहीं

2G मामले पर यदि गौर किया जाए तो नीलाम कर स्पेक्ट्रुम बेचने से दूरसंचार कंपनियों की लागत बहुत बढ जाती है और जिसका सीधा खामियाजा उपभोक्ताओं को ऊँची कॉल दरों के रूप में भुगतना पड़ता आज हमारी कॉल दरें समूचे विश्व में सबसे सस्ती हैं 1 पैसे प्रति सेकंड की अविश्वसनीय दरों पर हम घंटो फोन पर बतियाने का लुत्फ़ उठा रहे हैं और साथ ही सरकार की नीतियों को कोस भी रहे है संकर कुछ अजीब सा नहीं लगता आपको ?

कोयला आवंटन के मामले में भी कुछ ऐसा ही दृश्य है देश में पैदा होने वाली बिजली का लगभग 70 फीसदी हिस्सा कोयले से आता है कोयले का मूल्य बढने का सीधा मतलब है की बिजली पैदा करने वाले इन बिजली घरों की लागत बढ जाना और परिणाम स्वरुप बिजली के दामों में भारी बढोत्तरी आप और मैं जिसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है और ना ही ये देश क्योंकि किसी भी देश के विकास का पहिया बिजली की आपूर्ति पर ही भागता है बिजली नहीं होगी तो विकास भी ठप्प हो जायेगा

कुल मिलकर बात यह है की जहाँ बात सामाजिक सरोकारों की हो वहां सरकार को फायदे नुक्सान से ऊपर उठा आमजन के हित के बारे में सोचना होता है और ऐसी नीतियों बनानी होती है जो समाज व देश के विकास में मददगार साबित हो

पर अब इस विषय के दूसरे पहलु पर नज़र डालते हैं देश हित में कहकर क्या प्राकृतिक सम्पदा को निजी हाथों में औने-पौने दामों पर असीमित लाभ कमाने के लिए दिया जा सकता है 2G हो या कोयला आवंटन मामला दोनों में ही एक बात सामान्य थी की रातों रात बनी बहुत सी बेनामी कंपनियों ने ऊंची पहुँच के बल पर स्पेक्ट्रुम या कोयला ब्लाक ले लाखों की कंपनियों को पलक झपकते ही करोड़ों-अरबों का बना लिया कुछ ने हाथो हाथ कंपनियों में थोड़ी हिस्सेदारी बेच करोड़ों छाप लिए कुछ ने पूरी कम्पनी ही बेच डाली इसमें कोई संदेह नहीं की करोड़ों के इस खेल में बहुत बड़ा हिस्सा कंपनियों की तरफदारी करने वाले नेता या पार्टी को भी गया ही होगा पर इस वजह से पूरी नीति को दोष देना सही नहीं होगा यहाँ नीति सही है और यदि कुछ कमी भी है या उसमें थोडा बहुत सुधार किया जा सकता है पर दोष है क्रियान्न्वन में, की किस तरह वह अमल में लायी गयी यदि सरकार ने संजीदा उद्योगपतियों को या सिर्फ सरकारी कंपनियों को कम दरों पर आवंटन किया होता या आवंटन की शर्तो में कड़ाई बरती होती जैसे पहले ही लागत को ध्यान रख लाभ को सिमित कर दिया जाता या विक्रय मूल्य को तय कर दिया जाता तो शायद ऐसा नहीं होता

दोनों ही तथ्य हमारे सामने है एक तरफ है सामाजिक सरोकार और दूसरी तरफ घोटालों के कैंसर से सड़ चुकी हमारी व्यवस्था जिसके ठीक होने के आसार कम ही नज़र आते है जहा तक बात की जाए हालिया घटनाओं की इसमें कोई दोराय नहीं की यहाँ नीति से कहीं ज्यादा नियत ठीक नहीं थी अब ये हमारे ऊपर है की हम इससे घोटाला माने या घाटा ये आपको और हमे तय करना है






3 comments:

  1. Bhatia ji ye aapne likha hai ?? Kya aap bhi refinery main APC main lage ho...aapko kisi newspaper ka sampadak hona chahiye :) between nice artical..

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  2. Bhatia Ji...bye the way fertilizer subsidy is cut down..and there is every chance that government will cut down it fully or keep constant (not % percentage and this will automatically reduce it) and leave majority of farmers on thier fate....regarding LPG I am not able to understand why you, me and millions of like us are getting subsidy ?...The 96.53% of the countries electricity is comsumed by top 2% people...where is poor or marginalized are getting electricity?....Rich has made excuse for not paying at market(overall, including pollution) on the expense of saying that the poor will suffer...anyway..in near future only civil war seems to be inevitable...if we continue on same path...which I think is 100% probable....Naxalism is promo of this ...Mera Baharat Mahan...

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