Wednesday, October 2, 2013

कच्चा खिलाड़ी

90 के दशक के अंत में शहर मोहल्ले के बच्चों में video games का craze अचानक से जोर पकड़ रहा था। ये वो दौर था जब computer का नाम सिर्फ विज्ञान पत्रिकाओं में ही पढने में आता था। ऐसे में samurai और media के ये इलेक्ट्रॉनिक डिब्बे कुछ hi-fi से ही प्रतीत होते थे। 
इस craze को भुनाने के लिए कई छोटे बड़े विडियो गेम्स पार्लर शहर में कुकुरमुत्तों की तरह इधर उधर उग आये थे। कई STD PCO, Zerox वालों ने भी दूकान के पिछले हिस्से में एक टीवी डाल दिया। बच्चे आते और 1 रूपये में 15 min के हिसाब से खेल खाल कर निकल लेते। 
एक बार हम अपनी माताजी के साथ किराने की दूकान पर घर का सामान खरीदने बाज़ार गए। ज्यादा बड़े नहीं थे दूसरी तीसरी में रहे होंगे। माँ ने दुकानदार को सामान की लिस्ट थमा दी और इंतज़ार करने लगी, उस जमाने में घर का सामान जरुरत के हिसाब से खरीदा जाता था, आजकल तो सामान देख कर जरूरतें पैदा हो जाती है। मैं माँ के साथ ही खड़ा था तभी पड़ोस की दूकान से आती हुई MARIO की आवाज़ की तरफ मेरा ध्यान गया। मैंने झाँक कर देखा कुछ बच्चे उछल उछल कर विडियो गेम खेल रहे थे। बाल मन में इच्छा जाग गयी और मैंने माँ के कान में धीरे से कहा की मुझे भी खेलना है। उन दिनों तन्ख्वायें ज्यादा नहीं होती थी। माँ ने मेरे चेहरे की तरफ देख कुछ सोच कर हाँ कर दी। माँ मुझे video game वाले के पास ले गयी, पर हम तो खेलना नही जानते थे। मैं चतुराई के साथ बोला "भैया आप हमे बता दीजियेगा हम वही बटन दबा देंगे" पर इस तरह कोई भी खेल नहीं खेल जा सकता, 1 मिनट में काँटों वाले गमले से टकरा टकरा कर हमारा Game Over हो गया और हम मुंह लटकाए बाहर आ गये। 
राहुल बाबा का भी यही हाल है, राजनीति के नए खिलाड़ी है। दस पांच चेले चपाटों की फ़ौज उन्हें सलाह देती रहती है, और वो भी उनके अनुसार चलते रहते हैं । उलटे सीधे बयान दे कर एक दो लाइफ लाइन तो पहले ही गवां चुके है, जल्द ही ना समझे तो राजनीति से उनका Game Over होते अब देर ना लगेगी।

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